Thursday, April 17, 2014

जीते तो मोदी पर भारी पड़ेंगे राजनाथ

जीते तो मोदी पर भारी पड़ेंगे राजनाथ उतर प्रदेश से तय होगा किसकी हवा चली और कितनी चली अंबरीश कुमार लखनऊ । मोदी इस चुनाव के साथ ही राजनैतिक प्रबंधन के गुरु बन रहे है पर अभी भी आगे का उनका रास्ता बहुत साफ़ नहीं है । लखनऊ और कानपूर से ब्राह्मण और ठाकुर नेता जो संकेत दे और दिलवा रहे है उससे चुनाव नतीजों के बाद का संकेत समझा जा सकता है । पहले मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि यह ' लहर ' मोदी की नहीं भाजपा की है । इस टिपण्णी का अर्थ चुनाव नतीजों के बाद ही ठीक से समझ में आएगा। इसके बाद राजनीति में बड़ी सफाई से सबको ठिकाने लगाने वाले भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुलाकात के बाद मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी ने कहा -प्रधानमंत्री के लिए राजनाथ सिंह को आगे करना चाहिए मोदी से तो डर लगता है । साथ यह भी जोड़ दिया कि राजनाथ तो सामाजिक समरसता में वाजपेयी की परम्परा वाले है । भाषा में कुछ बदलाव भले हो पर भावना साफ़ है । कल्बे जव्वाद नकवी सियासत के गलियारे से गुजरते रहते है और जो भी सत्ता में हो उससे बेहतर संबंध रखते है । उत्तर प्रदेश की राजनीति में उलेमा का काफी महत्व रहा है और मायावती से मुलायम तक के घर की चौखट पर इन्हें महत्वपूर्ण मौकों पर देखा जाता रहा है । मायावती के घर तो ये जूते बाहर उतार कर जाते है । ऐसे में कल्बे जव्वाद की टिपण्णी आगे की राजनीति का संकेत दे रही है । अगर एनडीए को बहुमत के आसपास कि संख्या मिल गई तो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर नए सिरे से बहस हो सकती है । ऐसे में राजनाथ सिंह कई वजहों से भारी पड़ सकते है । वे उतर प्रदेश से है और उत्तर प्रदेश में भाजपा अगर तीस सीट से ज्यादा पाती है तो इसका श्रेय कोई अकेले मोदी को नहीं लेने देगा । और अगर भाजपा के कुछ दिग्गज नेता मसलन उमा भारती ,कलराज मिश्र और मुरली मनोहर जोशी आदि में कोई हारा तो मोदी की हवा की हवा निकल जाएगी और फिर जीते हुए नेता भीं दावेदार होंगे । राजनाथ सिंह अटल विहारी वाजपेयी के निर्वाचन क्षेत्र से यूँ ही नहीं चुनाव लड़ रहे है । वे उनके राजनैतिक उतराधिकारी बनना चाहते है जो मोदी को कोई नहीं मानने वाला है । वे कई दलों से बेहतर संबंध बनाए हुए है जिसमे मायावती और मुलायम भी शामिल है । इस मामले में मोदी राजनाथ सिंह के मुकाबले कमजोर है । राजनाथ सिंह देश में चंद्रशेखर के बाद अपने को राजपूत नेता के रूप में पेश कर चुके है और राजपूत नेताओं का एक बड़ा खेमा भी उनके साथ आ सकता है । इस लिहाज से मोदी जिनकी जाति को लेकर फिलहाल जानकर लोगों में मतभेत है वे किसी भी जातीय समीकरण में फिट नहीं हो पा रहे है । ऐसे में पार्टी के भीतर जातीय गोलबंदी की राजनीति भी राजनाथ के पक्ष में है । मुस्लिम समाज ने अगर प्रधानमंत्री के पद पर उनकी दावेदारी का सवाल चुनाव से पहले उठाया है तो नतीजों के बाद इसे वे पुरी ताकत से उठाएंगे यह साफ़ है । यह सभी को पता है कि लखनऊ का चुनाव मोदी नहीं राजनाथ सिंह का चुनाव है और जिस तरह सुल्तानपुर में वरुण गाँधी के अप्रत्यक्ष निर्देश के चलते मंच से मोदी का कोई नारा नहीं लगता वैसे ही राजनाथ यहाँ खुद के नाम पर चुनाव लड़ रहे है । यदि मोदी का ज्यादा नाम लिया तो वह शिया वोट चला जाएगा जो वाजपेयी के चलते भाजपा को मिलता रहा है । इसलिए लखनऊ में मोदी की न कोई लहर बना रहा है और न ही स्वत बन पा रही है । उत्तर प्रदेश में पहले दुसरे दौर के बाद कि स्थिति में फर्क आया है । ऐसे में मुस्लिम बिरादरी के जरिए राजनाथ सिंह की नई छवि गढ़ी जा रही है । हालाँकि संघ परिवार को यह सब रास नहीं आ रहा है जो इस चुनाव में पूरी ताकत से लगा हुआ है । यह नाराजगी सामने ना आए पर ज्यादा कुरेदने पर सब बाहर आ जाता है । सारा खेल उत्तर प्रदेश से भाजपा को मिलने वाली सीटों की संख्या पर निर्भर है । तीस पैंतीस का आंकड़ा इसलिए क्योंकि यह मोदी की हवा का प्रतीक नहीं बन पाएगा । जब सर्वे एजंसियों ने पचास का आंकड़ा दे दिया है तो मोदी से लोगों की अपेक्षा भी यही है । इस प्रदर्शन में अगर मोदी नाकाम हुए तो प्रधानमंत्री पद दावेदार भी बदल जाएंगे । और फिर राजनाथ सिंह ज्यादा मजबूत दावेदार होंगे । जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

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