Monday, April 30, 2012

कही बुतों की राजनीति में उलझ न जाए अखिलेश

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,30 अप्रैल । उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार भी बुतों ,स्मारकों और पार्कों कि राजनीति में उलझती नजर आ रही है जिसे लेकर जन संगठन और बुद्धिजीवी आशंकित है ।रविवार को प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी और मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव राकेश गर्ग के विभिन्न स्मारकों के दौरे के बाद से एक बार फिर पार्कों और स्मारकों को लेकर आशंका जताई जा रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अभी तक कोई ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसे लेकर आलोचना हुई हो । ऐसे में अपना एजंडा सामने रखने की बजाए अगर वे मायावती के राजनैतिक एजंडा के जाल में फंसे तो फायदा मायावती का होगा समाजवादी पार्टी का नहीं । यह नजरिया विभिन्न जन संगठनों का है। इस समय एक तरफ जहाँ आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दलित समुदाय आक्रोश में है वही सरकारी ठेकों में आरक्षण कि व्यवस्था समाप्त किए जाने के खिलाफ भी दलित संगठन लामबंद हो रहे है । सोशल मीडिया में इस मुद्दे को लेकर बहुत तीखी बहस भी चल रही है । ऐसे में दलित प्रतीकों से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर कोई भी गलत और गैर जरूरी फैसला अखिलेश सरकार की उस साख पर असर डाल सकता है जो चुनाव में सभी तबके समर्थन से बनी है और इसमे दलित भी शामिल है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -यह बहुत छोटा मुद्दा है पर बहुत संवेदनशील भी है ,यह जरुर ध्यान रखना चाहिए । बेहतर हो सरकार को इस मुद्दे से बचना चाहिए क्योकि इससे समाजवादी पार्टी को कोई राजनैतिक फायदा तो होने वाला नहीं है उलटे मायावती का दलित मतदाता जरुर गोलबंद हो जाएगा । जबकि पिछले चुनाव में गैर जाटव मतदाता बड़ी संख्या में मुलायम सिंह के साथ खड़ा था । दलित चिन्तक एसआर दारापुरी का मानना है कि सरकार का यह प्रस्ताव कुछ हद तक तो राजनीति से प्रेरित होना कहा जा सकता है पर इस में जनहित की बात भी दिखाई देती है। अगर स्मारकों के स्वरूप से कोई छेड़ छाड़ किए बिना उसका सदुपयोग सार्वजानिक हित में ज़रूरी स्कूल और अस्पताल आदि बनवाने के लिए करना गलत नहीं होगा ।पर दूसरी तरफ यह तर्क भी दिया जा रहा है कि अगर यह शुरुआत हुई तो लोहिया पार्क में कैंसर अस्पताल और राजघाट की फालतू जमीन पर कुष्ठ आश्रम बनाने की मांग शुरू हो जाएगी जो और दूर तक जाएगी । राजनैतिक विश्लेषक नीलाक्षी सिंह ने कहा -जब यह शुरू हो तो फिर सार्वजनिक भूमि पर धार्मिक स्थलों के नाम पर किये गए कब्जों को भी हटाया जाना चाहिए । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा देश एक धर्म निर्पेक्ष राज्य है। यदि सरकार धार्मिक स्थलों के नाम पर सार्वजनिक भूमि पर एक वर्ग को कब्जा करने देती है तो यह राज्य के धर्मनिरपेक्ष कर्तव्य की अवहेलना है जिस के गंभीर दुष्परिणाम हो रहे हैं। इससे साफ़ जाहिर है कि बुतों कि राजनीति में अगर सरकार फंसी तो इसी में उलझ कर रह जाएगी और उसका अपना एजंडा पीछे रह जाएगा । समाजवादी पार्टी सरकार ने चुनाव के दौरान किसान ,नौजवान और छात्रों के लिए बहुत से वायदे किए थे जिनपर जल्द से जल्द अमल जरूरी है । उत्तर प्रदेश कि राजनीति पर नजर रखने वाले वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -अखिलेश यादव को तो अभी अपना राजनैतिक एजंडा सामने रख खुद को साबित करना है क्योकि उनसे लोगों को काफी अपेक्षा है । इस तरह वे पार्क और स्मारकों की जमीन के सदुपयोग पर विचार करेंगे तो हासिल कुछ नही होगा राजनैतिक नुकसान तय है जो नौकरशाही के समझ में नहीं आने वाला ।ठीक उसी तरह जैसे मायावती के अफसरों को समझ में नहीं आया था । गौरतलब है कि पार्कों और स्मारको को लेकर मायावती पहले ही आगाह कर चुकी है । दूसरी तरफ सोशल मीडिया में दलित समूहों में इस मुद्दे को लेकर जिस तरह कि बहस चल रही है वह देर सबेर और तीखी तो होगी ही साथ ही दलितों को गोलबंद भी करेगी ।jansatta

1 comment:

  1. लखनऊ में जनहित के विकास कार्यो मसलन अस्पताल , कॉलेज आदि के लिए बसपा सरकार में निर्मित पार्को में खाली जगह के इस्तेमाल की जगह उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री आवास के समीप ही स्थित गोल्फ क्लब की भूमि पर जनता के हित के निर्माण कार्य होने चाहिए | चन्द धनाड्य , नौकरशाहों व पूंजीपतियों की सैरगाह व खेल - मनोरंजन के इस स्थल को आम जन के हित में लाया जाना चाहिए | ----- अरविन्द विद्रोही

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