Monday, April 9, 2012

मुस्लिम चेहरा न बुखारी ,न आजम खुद मुलायम !


अंबरीश कुमार
लखनऊ अप्रैल । जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्ला सैयद अहमद बुखारी की राजनैतिक सौदेबाजी पर अब सिर्फ आजम खान ही नहीं अन्य मुस्लिम भी राजनीतिक और बुद्धिजीवी सवाल उठाने लगे है । हारे हुए दामाद के लिए विधान परिषद की सीट और भाई के लिए राज्यसभा की सीट को लेकर बुखारी ने जिसतरह दबाव बनाया है उसे आज आजम खान ने न सिर्फ गैर इस्लामिक करार दिया बल्कि इसके लिए माफ़ी मांगने को भी कहा । दूसरी तरफ मुस्लिम राजनीति पर नजर रखने वालों का साफ़ कहना है उत्तर प्रदेश के हाल के चुनाव नतीजों ने बता दिया है कि समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा न तो अब्दुल्ला बुखारी रहे है और न आजम खान बल्कि खुद मुलायम सिंह यादव रहे है । मुलायम के ही नाम पर मुसलमानों के गढ़ में समाजवादी पार्टी जीती जहाँ मुसलमानों की मजहबी सियासत करने वाली पार्टियों को करारी शिकस्त मिली है । इन विधान सभा क्षेत्रों में मुरादाबाद ,अलीगढ ,आजमगढ़ से लेकर पीस पार्टी का गढ़ बढ़हल भी शामिल है। यह भी कहा अगर मुलायम सिंह बुखारी के दबाव में झुके तो अखिलेश यादव की ही मुश्किलें बढेंगी किसी और की नहीं । मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने विधान सभा चुनाव के दौर में ही जनसत्ता से कहा था -समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा खुद मुलायम सिंह यादव है बुखारी और आजम खान नहीं । पर अब बदले हुए हालात में जफरयाब जिलानी ने कहा -इन दोनों नेताओं के बीच तल्खी बढ़ना मुस्लिम राजनीति के लिए भी ठीक नहीं है। बुखारी का यह कहना कि मुसलमानों को सत्ता में वाजिब हिस्सा नहीं मिला सही नहीं । कुल पैतालीस मंत्रियों में नौ मंत्री और प्रदेश में नौकरशाही के चार प्रमुख पदों में मुख्य सचिव का पद करीब पैतीस साल बाद किसी मुसलमान को दिया गया है इसलिए यह तर्क सही नहीं है ।
इस बार मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वालों की जिस तरह हार हुई है वह देखना भी रोचक है ।अलीगढ़ में सपा उम्मीदवार को ६८२९१ वोट मिले तो पीस पार्टी को मात्र तीन हजार आठ सौ ।इसी तरह मुरादाबाद में सपा को ८८३४१ वोट मिले तो पीस पार्टी को १३२५ । रामपुर में आजम खान को ९५७२२ वोर तो इंडियन
यूनियन मुस्लिम लीग के सिफत अली को कुल ६०८ वोट और इत्तेहाद मिल्लत कौंसिल को ४७७ वोट । पीस पार्टी के अध्यक्ष के गढ़ में भी बसपा जीती । यह राजनैतिक दलों और मजहबी दलों की सियासत को भी साफ़ कर देता है जिसका । समाजवादी पार्टी के ४६ विधायक जीत कर आए और मुस्लिम राजनीति का बड़ा नाम माने जाने वाले बुखारी अपने दामाद को न जितवा पाए तो इसका संदेश साफ़ है । एक और तथ्य ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में मुलायम सिंह ने खुद प्रचार किया है और मुसलमानों ने उनके ही नाम पर ,कार्यक्रम और घोषणाओं पर भरोसा किया । बाबरी ध्वंस के फैसले पर मुलायम की प्रतिक्रिया ने फिर उन्हें पुराने मुकाम पर पहुंचा दिया है पर वे सबको साथ लेकर चले । पर अब जिस तरह बुखारी ने सौदेबाजी की उससे सभी नाराज है । आजम खान ने कहा -उन्हें अपनी राय अख़लाक़ ,अपनी अभद्र जबान और इस गैर इस्लामी मांग के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए ।हमारा तो राजनीति में काम करने का अपना तरीका है जिसके चलते आठवी बार चुन कर आया हूँ पर जो अपना मैदान छोड़ कर आए वे अपने दामाद की जमानत भी न बचा पाए । वे बन्दों के नहीं अल्लाह के मुजरिम है । वे इमामत करे सियासत नहीं ।
दूसरी तरफ तहरीके निसवां की संयोजक ताहिरा हसन ने कहा - मुसलमानों के स्वयंभू ठेकेदार बुखारी के दामाद की मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में से करारी हार हुई है । आज़म खान अपने क्षेत्र के अलावा पूरे उत्तर प्रदेश में कही कोइ असर नहीं रखते । मुख़्तार अब्बास नकवी से लेकर सलमान खुर्शीद तक सभी पार्टियों ने मुस्लिम कार्ड खेलने की नाकाम कोशिश की है वजह यह है की इन सभी का अपने और अपने परिवार की तरक्की तो मुसलमान होने की वजह से हुई पर आम मुसलमनो का सिर्फ और सिर्फ नुकसान हुआ है । दूसरी सामाजिक राजनैतिक बदलाव का अध्ययन करने वाली नीलाक्षी सिंह ने कहा-राजनीतिक अखाड़े में एक तरफ तो सेकुलर पार्टियां हैं जो सारे मुसलमानों को उपेक्षित तबका मानती हैं और उनको कुछ सुविधा देने का वायदा करती हैं । इस देश में मुसलमानों का तुष्टिकरण तो हुआ है पर सवाल है कि किन मुसलमानों का?

जनसत्ता

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