Saturday, April 28, 2012

बर्फ ,बारिश और मुक्तेश्वर

अंबरीश कुमार
कल से लगातार बारिश हो रही है .पास के नथुआखान में ओले गिरे तो दूर पहाड़ियों पर बर्फ गिरी .ठंढ से बुरा हाल है .अप्रैल में इतनी ठंढ कभी नहीं देखी कि बारिश और हवा चलने पर बाहर निकलने की हिम्मत न पड़े .कमरे के फायर प्लेस आग जलवाने के बाद ही राहत मिली .खिडकी के बाहर कडकती बिजली कि रोशनी में बारिश और तेज हवा से प्लम का पुराना पेड़ लहराता नजर आ जाता था . सुबह ही वीएन राय का फोन आया तो बोले -दो मई को पहुँच रहा हूँ करीब हफ्ते भर के लिए क्या गर्म कपडा लाना होगा .मेरा जवाब था पूरी तैयारी के साथ आए ठंढ ज्यादा है .कुछ और जानकारी ली उन्होंने क्योकि पहली बार वे अपने घर में ज्यादा समय गुजरने जा रहे है जो पिछले साल भारी बारिश के बाद ठीक कराया था .खैर ,बारिश के चलते जंगल की हरियाली खिल गई है .फूलों के रंग निखरने लगे है .इस बीच मुक्तेश्वर हो आया . मुक्तेश्वर में बारिश देखना बहुत ही सुखद अनुभव है .मुक्तेश्वर पहुँचने से पहले घने और हरे जंगल सही में जंगल होने का अहसास कराते है .डाक बंगले पहुंचे तो चाय से कुछ गरमी आई .यह डाक बंगला भी गजब का है .लौटने का मन नहीं करता .बारिश के बाद धुंध में घिर जाने के बाद यह काफी रहस्मय लगता है .सामने और पीछे दोनों तरफ देवदार के दरख़्त है .पीछे की तरफ जंगल में एक पगडंडी जाती हुई दिखती है जो बारिश के बाद भीगी हुई है .पीछे पर्यटन विभाग का गेस्ट हाउस है तो बगल में कुछ दूरी पर मुक्तेश्वर धाम .एक ऐसा मंदिर जिसके आसपास कभी मिठाई की कोई दूकान नहीं मिलेगी फल फुल जरुर मिल जाएंगे .मंदिर बहुत प्राचीन है और वाहन से आसपास का विहंगम दृश्य दिखी पड़ता है .देवदार के पेड़ों पर पहाड़ी कौवे अपनी कर्कश आवाज से ध्यान खींचते है . कुछ समय बाद बारिश रुकी तो लौटे .रामगढ में प्रवासी लोगों के काटेज में नेपाली नौकर चौकीदार साफ़ सफाई में जुट गए है क्योकि मई में उनके 'साब 'लोग आ जाएंगे .यहाँ पर नेपाली लोगों की भी अच्छी आबादी है जो आम तौर पर चौकीदारी से लेकर घर का कामकाज करते है .नेपाली समाज का एक हिस्सा खेती में भी जुटा था क्योकि सिंधिया स्टेट ने उन्हें साल साल भर की लीज पर खेती की जमीन दे दी थी जिसपर वे आलू ,बीन्स और मटर उगाते थे .शाम को पहाडी औरते मवेशियों के लिए दूर जंगलो से चारा लेकर आती नजर आती है पर सिर पर घास के गठ्ठर में उनका चेहरा भी छिप जाता है .यह रोज का काम है ,जंगल से पहले ईंधन के लिए लकडियाँ ले आना फिर मवेशियों के लिए चारा .बच्चे पहाड़ी खेतों में बकरी चराते नजर आ जाते है .शाम ढलते ही इनके घरों से धुंआ उठने लगता है .घर भी मामूली सा.अपने अगले मोड पर तिन कि छत वाला जो घर है उसके बाहर कुछ मुर्गियाँ नजर आती है तो बिना पट्टे वाला एक कुत्ता जो देखते ही भौकने लगता है .सामने बैठी महिला नमस्कार करने के बाद पूछती है ,साहब बच्चे अभी नहीं आए .बताता हूँ कि अगले महीने आ रहे है .फिर आगे बढ़ जाता हूँ बहादुर और दोनों कुत्तों के साथ .

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