Thursday, April 5, 2012

साख पर बट्टा


अंबरीश कुमार
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सेना की दो टुकडियां कूंच करे दिल्ली की ओर वह भी तब जब संसद चल रही हो । यकीनन यह कोई तख्ता पलट नही था पर साठ साल के लोकतंत्र में यह पहली बार हुआ और तब हुआ जब सेना का एक जनरल सरकार से अपना सेवा विस्तार चाह रहा हो । इसके लिए वह सब कुछ करता है । मीडिया में दबाव बनाता है ,उस सरकार के खिलाफ लड़ने अदालत चला जाता है जिसके निर्देश पर उसे सीमा पर लड़ना होता है । क्या कोई दूसरा उदाहरण अपने इतिहास में है । उम्र के विवाद की लड़ाई जिस तरह जनरल ने लड़ी वह कही से भी शोभनीय नहीं थी । इस देश में सरकार और सेना में बहुत फर्क है । सरकार एक नही कई बार कटघरे में खड़ी होती है पर सेना नहीं । उस सेना की दो टुकड़ी को राजपथ की तरफ कूच करा देना और जब तक सरकार चेते उसे वापस बुलाकर रुटीन अभ्यास बता देना बहुत मासूम सा जवाब है । गनीमत यह देश बहुत बड़ा है कोई मालदीव जैसा छोटा सा देश नही वर्ना बैरक से निकली सेना कहा तक जाती यह पता नहीं । जो लोग इस घटना को लेकर इंडियन एक्सप्रेस अख़बार का उपहास उड़ा रहे है कम से कम यह जानकारी तो रख ले कि जब बिना सेना के इस देश का लोकतंत्र गिरवी रखा गया था तो मुकाबला यही अख़बार समूह कर रहा था कोई दूसरा बड़ा और मुनाफे वाला समूह नही । और लोकतंत्र को निपटाने के लिए सेना की जरुरत भी नहीं पड़ी थी सिपाहियों से ही काम चल गया था । आज सवाल सिर्फ दो टुकड़ी के कूच का नहीं है ,सवाल यह है कि जब संसद चल रही हो और ऎसी घटना जिसके चलते रक्षा सचिव को विदेश से बुलाना पड़े ,सोते हुए प्रधानमंत्री को जगाना पड़े और डीजीएमओ को तलब कर सेना की दो टुकड़ियों को बैरक में भेजने को कहना पड़े तो क्या इस बात की जानकारी संसद को और देश को देना जरुरी नहीं थी । खासकर उस माहौल में जब सेना और सरकार के बीच शीत युद्ध चल रहा हो । थल सेना का जनरल सरकार के खिलाफ अदालत जा रहा हो ।उम्र विवाद को लेकर इस जनरल ने सिर्फ सरकार ही नही सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी टिपण्णी की थी । यह इस देश में पहली बार हुआ । जब देश के जनरल का भरोसा सरकार और सर्वोच्च न्यायलय से डिग जाए तो क्या क्या आशंकाए जन्म ले सकटी है यह किसी आम आदमी से पूछ ले वह आसानी से बता देगा । जब जनरल सिर्फ एक पत्रकार को बुलाकर बड़ा खुलासा करे तो सवाल उठता है । जब जनरल की वह चिठ्ठी लीक हो जाए जिससे सारी दुनिया को भारतीय सेना की कमजोरी का पता चलता हो तो भी सवाल पैदा होता है और उस पत्र से यह भी लगता है मानो अब सेना हथियार के मामले में होमगार्ड में बदल गई हो । इतने विवादों के बीच जब सेना की दो टुकड़ी राजपथ पर बढती है तो न इसे सामान्य अभ्यास माना जा सकता है और न यह जानकारी नजरंदाज की जा सकती है । इस देश में कोहरा और जाड़ा हर साल पड़ता है पर सेना की टुकड़ी बिना बताए पहली बार जब दिल्ली की और बढती है तो शक जरुर पैदा होता है । इस घटना को लेकर वे लोग जरुर चौकन्ने हुए है जो लोकतंत्र पर हुए हमले को पहले भी झेल चुके है। देश में पिछले कुछ समय से एक उदार और लोकप्रिय तानाशाह की जरुरत पर जोर दिया जा रहा है। अन्ना के आंदोलन में भी यह सब उभर कर आ चुका है । केजरीवाल तो संसदीय लोकतंत्र पर पहले ही सवाल खड़ा कर चुके है । ऐसे में हम खबर से लड़ने लगे ,यह समझ से बाहर है । कौन सी खबर कितनी बड़ी हो ,किसके नाम से हो किस जगह से चल कर आई हो यह आम आदमी का सवाल नहीं हो सकता । पर सेना का एक जनरल सरकार को आँख दिखाने लगे तो यह 'खतरा ' जरुर नजर आता है । सरकार का अर्थ सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनी हुई सरकार से है । आपरेशन ब्लू स्टार के बाद कश्मीर में सेना अपनों से भी लड़ रही है ,यह ध्यान रखना चाहिए ।
(विरोध ब्लाग पर हर हफ्ते आने वाला अपना कालम )

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