Wednesday, May 2, 2012

फिर खड़ी हुई हारी हुई मुस्लिम पार्टियाँ

अंबरीश कुमार लखनऊ , मई ।मुस्लिम राजनीति के सहारे खड़ी हुई पार्टियों विधान सभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद अब फिर से खडी होने की कोशिश में जुट गई है । यह कोशिश कितनी कामयाब होगी यह कहना फिलहाल मुश्किल है क्योकि उनमे विवाद और टकराव का नया दौर भी शुरू हो गया है । इन पार्टियों में
तक रही है । इनमे पीस पार्टी ने एक और टूट के बाद दावा किया है कि वह उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को नए सिरे से लामबंद करने जा रही है । उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में पांचवें नंबर की पार्टी बनकर उभरी पीस पार्टी इससे पहले पांच बार टूट चुकी है और दो दिन पहले एक और टूट का एलान किया गया । इस बार पार्टी के प्रवक्ता युसूफ अंसारी ने पार्टी तोड़ने का श्रेय लिया और दावा किया कि पीस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और प्रदेश कार्यकारिणी के कई सदस्यों के अलावा 25 मौजूदा ज़िलाध्यक्ष और पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले 50 से ज़्यादा उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी का बड़ा हिस्सा उनके साथ है। जिसे देखते हुए नई पार्टी के ऐलान के लिए जल्द ही लखनऊ मे बैठक बुलाए जाने की संभावना है। दूसरी तरफ उलेमा कौंसिल बाटला हाउस कांड के बाद उभरी और २००९ के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में वोट लेकर अपनी ताकत दिखाई थी वह अब हाशिए पर जा रही है । उलेमा कौंसिल भी निकाय चुनाव से एक बार फिर ताकत दिखाने की कोशिjansattaश में है ।पर इस दल में भी अब पहले जैसी एकजुटता नहीं रह गई है । पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर अब्दुल मन्नान ने इस टूट को हास्यास्पद बताते हुए दावा किया कि अब छठी बार पार्टी तोड़ी जा रही है । दो बार कांग्रेस हमारी पार्टी तोड़ चुकी है तो एक बार समाजवादी पार्टी पर हम वही है जहाँ पहले थे । खास बात यह है कि पार्टी के अध्यक्ष डाक्टर अयूब अंसारी है और हर बार पार्टी तोड़ने का काम अंसारी बिरादरी के नेताओं ने ही किया है । पर पार्टी निकाय चुनाव की तैयारी में जुट रही है और उसका दावा है कि वह चालीस से पचास सीट जीतेगी क्योकि मायावती पहले ही इन चुनावों से दूर हो चुकी है और अब मुलायम सिंह भी इतनी बड़ी जीत पर कोई बट्टा न लगे इसलिए मैदान में नहीं उतरने वाले । पर समाजवादी पार्टी सरकार अपने मुस्लिम जनाधार को बरक़रार रखने के लिए भी पूरी तरह सचेत है और उसका एजंडा भी तैयार हो रहा है ।समाजवादी पार्टी प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा -पार्टी ने मुसलमानों के हक़ में जितने वायदे किए थे सब पूरे होंगे और बजट में इस सिलसिले में विशेष प्रावधान भी किया जा रहा है । प्रदेश का मुसलमान किसके साथ खड़ा है यह लोग चुनाव में देख चुके है । गौरतलब है कि विधान सभा चुनाव में पीस पार्टी और उलेमा कौंसिल ने जिस तरह बढ़ चढ़ कर दावे किए थे वे सब ध्वस्त हो गए और मुसलमानों का बड़ा हिस्सा दोनों मुस्लिम पार्टियों उलेमा काउंसिल और पीस पार्टी को किनारे लगाते हुए समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा हुआ । हाल ही में जब अन्ना हजारे ने देवबंद के मुस्लिम धर्म गुरु से मिलने का प्रयास किया तो उन्हें टका सा जवाब मिला था । सूत्रों के मुताबिक एक मुस्लिम धर्म गुरु ने कहा था -उत्तर प्रदेश का मुसलमान बहुत खुश है अखिलेश यादव सरकार से और पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम विधायक जीत कर आए है । इसलिए वे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते जिसका गलत संदेश जाए । इससे साफ़ है कि प्रदेश की मुस्लिम राजनीति को संचालित करने वाली ताकते समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से खड़ी है । जौनपुर से आरिफ हुसैनी के मुताबिक संजरपुर के नौजवानों की लडाई लड़ने के लिए मौलाना आमिर रशादी ने उलेमा कौंसिल का गठन किया था । पूर्वांचल के लोगो को ये उम्मीद थी की ये संगठन मुस्लिम हितो की रक्षा के लिए अवाम बेकसूर लोगो की लडाई लडेगा , परन्तु उलेमा कौंसिल ने इस लडाई को सियासी दलों की तरह मात्र एक मुद्दा बना कर चुनावी रंग दे दिया । लोकसभा चुनाव में तो मुसलमानों ने उलेमा कौंसिल का साथ बढ़ चढ़ कर दिया और कई सीटो पर अपनी ताकत का एहसास करादिया लेकिन किसी भी सीट पर जीत का सेहरा नहीं बांध सके । लोकसभा चुनाव के बाद मौलाना आमिर रशादी ने बाटला हाउस की लडाई को केवल श्रधांजलि सभा तक ही सिमित कर दिया । ये देख यहाँ की जनता ने विधानसभा चुनाव में मौलाना आमिर रशादी के खिलाफ मनं बनाकर उलेमा कौंसिल के प्रत्याशियों को बुरी तरह हराया । अब अपना वजूद कायम रखने के लिए उलेमा कौंसिल के नेताओ ने निकाय चुनाव में उतरने का फैसला किया है ।जनसत्ता

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