Tuesday, April 3, 2012

अस्सी के दशक में

लोकायन में अस्सी के दशक में प्रकाशित अनिल सिन्हा की एक रपट जो अमिताभ ने भेजी थी वह स्पष्ट नहीं थी फिर भी हमारी सहयोगी उप संपादक ने जैसी कम्पोज की वह दी जा रही है और अमिताभ आगे का भेज देंगे तो वह भी दी जाएगी .लोकायन में उस दौर की राजनैतिक सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को लेकर बहुत गंभीर रपट और बातचीत छापती थी जिसके संपादक विजय प्रताप भी थे और सीएसडीएस के प्रमुख लोग इससे जुड़े हुए थे .जो पहल उस दौर में हुई और जो चिंताए थी उसकी एक बानगी है .रपट का एक अंश -'
'यह शायद 26 फरवरी का दिन था। अपने मित्र अंबरीश के बुलावे पर लखनऊ की कृष्णा नगर कालोनी में चल रही युवा छात्र - छात्राओं की एक बैठक में जा पहुंचा। लगभग बीस लोग थे। यह लखनऊ में कोरही के किनारे बसे 'मार्टिन पुरवा' नामक गांव में बसे बच्चों में बढाए जा रहे शिक्षा -कार्यक्रम की समीक्षा बैठक थी। किसी ने कहा कि महीनों कार्य करने के बाद हमें लग रहा है कि कुछ रूटीन काम जैसा कर रहे हैं और बच्चों का उत्साह भी धीमा पड़ गया है। अल्पसंख्यक बहुत इस इलाके के बच्चों की पढाई में अभिभावकों की कोई रूचि पहले भी नहीं थी और अभी भी नहीं है। फिर लोगों ने इस ऊब के कारण ........ शुरू किए और पाया की इसके मुख्य कारण है बच्चों की रूचि को महत्व नहीं देना और चारों ओर ....... सास्कृतिक विकृतियों को इस सिलेबस के माध्यम से दी जाने वाली समर्थ चुनौती का अभाव। बात आगे बढ़ी और पाठ्यक्रम व दिनचर्या जैसे मामलों की छानबीन की गई। मार्टिन पुरवा के बच्चों के सर्वे में पाया गया कि वे देश का नाम मार्टिन पुरवा बतलाते हैं। अमिताभ बच्चन को जानने वालों की संख्या महात्मा गांधी के जानने वालों की संख्या से तुलना नहीं की जा सकती। लखनऊ की झोपड़ पट्टियों व बस्तियों में काम करने वाले इस संगठन का नाम क्षितिज है। इसकी स्थापना 1984 में की गई थी। हालांकि यूनिसेफ के कार्ड बेचने के लिए गीता वर्मा नाम की प्रोजेक्ट आफिसर ने इन युवाओं से प्रारंभिक संपर्क किया था, लेकिन को सुधारने व बदलने के इरादे वाले नौजवानों ने कार्ड बेचने से बेहतर काम एक नए संगठन को जन्म देना समझा। फिर दलित समूहों में अशिक्षा दूर करने और समाज की पतनशील संस्कृति के खिलाफ उच्चतर मूल्यों के बचाव प्रसार के लिए इन्होने काम करना शुरू कर दिया। मार्टिन पुरवा के बच्चों के बीच शिक्षा फैलाने का कार्य इसी का हिस्सा था। जब नौजवानों को लगा कि प्रचलित स्कूली शिक्षा ,,,,,,,,,,,,,, की बस्तियों में उनके कार्यक्रम फ़ैल गए हैं। क्षितिज का सामाजिक ढांचा प्रजातांत्रिक है। और यह निर्णय आम सहमति से लिए जाते हैं। शुरू में इसके अध्यक्ष दो वर्षों तक अमित चटर्जी थे व अपर्णा माथुर महासचिव। वर्तमान अध्यक्ष अमिताभ हैं और महासचिव धीरज पांडे। कार्य को अब तक धीरे कराने वाली अपर्णा माथुर लखनऊ विश्वविध्यालय के बायोकेमिस्ट्री विज्ञान की छात्र है । वे अपने निवास नरही से मार्तिंग पुरवा तक साईकिल से आती है। जिसकी दूरी चार किलोमीटर है। इसी तरह अमिताभ क्षितिज के कामों में अपना काफी समय देते हैं। ऐसे लड़के लड़कियों की संख्या 30 के आस पास है। बाद में क्षितिज के ज्यादातर लोग विश्वविद्यालय स्तर पर संगठित लखनऊ यूनिवर्सिटी थिंकर्स काउंसिल (एलयूटीसी ) से जुड़ गए। लखनऊ यूनिवर्सिटी थिंकर्स काउंसिल के संस्थापक - संयोजक अंबरीश कुमार बताते हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय स्टुडेंट्स यूनियन के कई वर्षों तक पदाधिकारी रहने के बाद उन्होंने महसूस किया कि स्टुडेंट्स यूनियनों की बड़ी सीमाएं हैं और छात्र ....
जारी है

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