Sunday, April 15, 2012

सामंत की कचहरी में इंसाफ



अंबरीश कुमार
मनिकापुर । राजे रजवाड़े अब नहीं रहे पर कई जगह आज भी इन पुरानी रियासतों के नए उत्तराधिकारी ग्रामीण समाज में सामंत से लेकर महाराज की भूमिका निभा रहे है । उत्तर प्रदेश में चाहे बलरामपुर हो ,रामपुर या फिर मझौली ,भद्री ,मांडा,शंकरगढ़ कालाकांकर ,अमेठी से लेकर मनिकापुर यहाँ की रियासतों के उतराधिकारी महाराज ,नवाब ,रानी साहिबा या राजकुमारी ही कहलाती है । बात यही तक ही सीमित नहीं है उस दौर की कई परंपरा आज भी इन रजवाडो में कायम है । पूर्वांचल की ऎसी ही एक ताकतवर रियासत मनिकापुर में आज भी महाराज की कचहरी में फरियाद सुनी जाती है और इंसाफ होता है । आने वालों की संख्या भी कम नहीं दिन भर में तीन चार सौ से ज्यादा हो सकती है हालाँकि इसमे भी एक फरियादी के साथ पांच दस लोग तक होते है । शनिवार की शाम बक्सरा के लोनिया पूर्व गाँव की एक जवान महिला विमला करी बारह साल के पुत्र किशन के साथ पहुंची और इंसाफ की गुहार लगाई । गाँव के एक दबंग ने बच्चों के झगडे में न सिर्फ बच्चे की पिटाई की बलिक इस महिला को भी बुरी तरह मारा। और जैसा ज्यादातर मामलों में होता है थाने में दबंग की सुनी गई और कमजोर को भगा दिया गया । अब ये लोग राजा कुंवर आनंद सिंह के महल स्थित बंगला में पहुंचे फरियाद के लिए । और फ़ौरन इस दिशा में कदम भी उठाया गया ।
महल के ठीक सामने रुद्राक्ष के पेड़ की हरी और बीच बीच में सुर्ख पत्तियों के नीचे खपरैल की छत वाला एक झोपडी जैसा भवन है जिसमे पचास साथ लोग बैठ सकते है इसे बंगला कहा जाता है और यही पर फरियादी आते है जिनकी बात सुनी जाती है और जो भी जरुरी कदम हुआ वह उठाया जाता है । यहाँ बाकायदा एक पेशकार है और झगडा विवाद रजिस्टर भी । ब्रिटिश राज में जमींदारी व्यवस्था के चलते न सिर्फ भू राजस्व वसूला जाता था बल्कि औपनिवेशिक हुकूमत भी कायम रहती थी । राजपाट के साथ यह सब तो चला गया लेकिन बहुत कुछ अभी भी बाकी है खासकर ऎसी रियासतों के अधीन वाले ग्रामीण समाज में । उन रियासतों में ज्यादा फरियादी आते है जिनके उतराधिकारी राजनैतिक ताकत भी रखते है । यही वजह है राजा बलरामपुर से ज्यादा राजा मनिकापुर के यहाँ लोग पहुँचते है । राजा मनिकापुर यानी कुवर आनंद सिंह लंबे समय तक लोकसभा में रहे तो इस समय अखिलेश यादव सरकार में काबीना मंत्री है तो उनके पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह तीन बार सांसद रहे पर पिछला चुनाव हार गए पर थे । इसलिए इसे इनकी राजनैतिक ताकत का भी असर माना जा सकता है ।
पर कुछ बदला बदला भी नजर आता है । जो सामंत कभी शिकार से लेकर तरह तरह के शौक रखते थे आज उनकी नई पीढी अलग रास्ते पर है । मनिकापुर रियासत की निहारिका सिंह अब जंगल ,जमीन और जानवर बचाने की मुहिम में जुटी है । उनका कार्यक्षेत्र यहाँ के सुहेलवा वन्य जीव अभ्यारण्य से लेकर दिल्ली तक है और इस लड़ाई को वे सुप्रीम कोर्ट तक ले जा चुकी है । निहारिका सिंह ने जनसत्ता से कहा - लोगों के फरियाद लेकर आने की परंपरा बहुत पुरानी है । बचपन से हम सुनते आए है कि नालिस वाले आए है । यह सिर्फ यहाँ ही नहीं जहाँ इस तरह की परंपरा रही उनमे बहुत जगह यह कायम है जो लोगों का भरोसा ही दर्शाती है ।
ब्रिटिश दौर की कुछ झलक अभी भी इन रियासतों में दिखती है भले तोपों की सलामी और गार्ड आफ आनर की परंपरा ख़त्म हो गई हो । यहाँ पर एक पेड़ के नीचे बड़ा घंटा है जो हर एक घंटे बाद बजाकर समय बताता है । करीब सौ कर्मचारियों का स्टाफ है पर मैनेजर हरीश पांडेय को यह नहीं पता इस महल में कमरे कितने है । जेड प्लस सुरक्षा के इस दौर में इस रियासत की सुरक्षा सिर्फ बिना हथियार वाले छह निजी सिपाहियों के हाथ में है । बावन बीघा में बने इस महल की चमक दमक भी पहले जैसी नजर नहीं आती और न ही आर्थिक भव्यता का कोई प्रतीक । महल के डाइनिंग हाल में दीवार पर लगी ब्रिटिश दौर तीन बंदूके और एक तमंचा ही इस रियासत की पुरानी ताकत का अहसास करता है जो कभी बारह कोस की रियासत थी । न अब कोई तोप दिखती है और न घोड़े और न कोई सेना ।
जनसत्ता
फोटो - कुअंर आनद सिंह की पुस्तैनी कचहरी

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