Sunday, December 18, 2011

अब हमलावर नही ,बचाव की मुद्रा में मायावती

अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर । बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पिछले विधान सभा चुनाव में नारा दिया था ,चढ गुंडों की छाती पर -मुहर लगाओ हाथी पर लेकिन आगामी विधान सभा चुनाव के लिए आज मायावती ने नया नारा दिया ,चढ़ विपक्ष की छाती पर -मुहर लगेगी हाथी पर । मायावती की अन्य रैली की तरह इस रैली में भी भारी भीड़ थी और मुस्लिम ,क्षत्रिय और वैश्य समाज के साथ अन्य बिरादरी के लोग भी जुटे । पर इस एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए यह सम्मलेन हुआ उसका जिक्र कम हुआ और कांग्रेस पर हमला ज्यादा हुआ । यह मायावती के राजनैतिक एजंडा और उनकी आशंका को भी दर्शाता है । वे मुलायम सिंह से ज्यादा राहुल गांधी से असुरक्षित महसूस कर रही है या राजनैतिक रणनीति के चलते ऐसा कर रही है यह साफ़ नही है। यह उत्तर प्रदेश का सियासी मिजाज जानने वाले अच्छी तरह जानते है कि चुनावी लड़ाई में फिलहाल मायावती मुलायम सिंह से पिछड़ रही है और अब सत्ता में आने के लिए सिर्फ गठबंधन का एक कमजोर रास्ता ही विकल्प नजर आता है । पर उसके लिए भी संख्या महत्वपूर्ण है । इसी संख्या के लिए वे कांग्रेस को किसी भी तरह मुकाबले में लाने की पुरजोर कोशिश कर रही है ताकि मुस्लिम वोटों का किसी तरह बंटवारा हो जाए ताकि आगे बढ़ती समाजवादी पार्टी का जनाधार प्रभावित हो ।
पिछले विधान सभा चुनाव से लेकर अब तक हर राजनैतिक दल का सामाजिक राजनैतिक समीकरण बदल चुका है । आगामी विधान सभा चुनाव के मद्देनजर सबसे ज्यादा राजनैतिक नुकसान बसपा का नजर आ रहा है जो इस बार भ्रष्टाचर से लेकर उसी कानून व्यवस्था को लेकर घिरी हुई नजर आ रही जिसके नारे पर वे पिछली बार छप्पड़ फाड़ बहुमत से जीत कर आई थी । पर तब से अबतक बहुत कुछ बदल चुका है । मायावती सरकार के मंत्रियों का बहुमत भ्रष्टाचार के घेरे में है तो कई नेता विधायक और सांसद हत्या और बलात्कार के मामले में फंस चुके है । ऐसे में वह मध्य वर्ग जो उन्हें जिता कर लाया था वह बिदक चुका है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के साथ राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस हमला तेज करती जा रही है। राहुल गांधी का यह वाक्य -लखनऊ में एक हाथी बैठा है जो पैसा खाता है ,न सिर्फ मशहूर राजनैतिक जुमला बन रहा है बल्कि अब मायावती को भी आहत कर रहा है । यही वजह है आज मायावती ने कहा -कांग्रेस का दिमाग ख़राब हो गया है जो उन्हें हाथी भी पैसा खाता दिखता है । दरअसल यह जुमला भी भ्रष्टाचार का मुहावरा बन रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश की नई पीढी ने न तो बाबरी ध्वंस का समय देखा है ,न राम जन्म भूमि आन्दोलन और न ही वे बोफोर्स से बने राजनैतिक माहौल के बारे में जानते है । ऐसे में कांग्रेस के इतिहास को लेकर बहुत ज्यादा असर पड़ता नहीं दिख रहा है । दूसरी तरफ सभी दलों को अपने परंपरागत जनाधार और संघर्ष की क्षमता के आधार पर ही वोट मिलना है । ऐसे में घूम फिरकर लड़ाई फिर सपा बसपा के बीच नजर आती है जिसमे कांग्रेस लोकदल गठबंधन के बाद बढ़ रही है पर उसक भी एक सीमा है । इसलिए मायावती हमला भले कांग्रेस पर करे पर ज्यादा आशंकित वे समाजवादी पार्टी से है जिसका समूचे प्र्रदेश में बूथ स्तर का मजबूत ढांचा है । पर उत्तर प्रदेश में चार साल से लड़ रही समाजवादी पार्टी पर मायावती ज्यादा हमला न कर कांग्रेस को निशाने पर रखती है। रहुल गाँधी के हाल के दौरे और पहले के दौरे के बाद मायावती ने जैसी प्रतिक्रया की है उससे तो यही लगता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा ही लड़ रही है । अपवाद के रूप में भाजपा के आरोप भी मायावती की जबान पर आते है पर उसमे चेतावनी कम नसीहत ज्यादा होती है । आज भी मायावती ने भाजपा को अपना बचा खुचा जनाधार बरक़रार रखने की सलाह दी बजे इसके कि वह उनके परिजनों पर आरोप लगाए । आखिर भाजपा का जनाधार चुनाव बाद किसके काम आता है यह जाहिर है ।

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