Sunday, December 11, 2011

आदिवासी महिलाओं पर फर्जी मुकदमे


अंबरीश कुमार
लखनऊ , दिसंबर । कैमूर क्षेत्र की महिलाएं पंद्रह हजार से ज्यादा फर्जी मुक़दमे झेल रही है । इनमे ज्यादातर मुक़दमे मिर्जापुर ,चंदौली और सोनभद्र जिले की दलित व आदिवासी महिलाओं पर है । अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर सैकड़ों महिलाओं ने प्रदर्शन कर प्रदेश सरकार और प्रशासन को चेतावनी दी है कि अगर एक महीने के भीतर इन महिलाओं और उनके परिजनों के खिलाफ मुक़दमे वापस नही हुए तो जनवरी के अतिम हफ्ते में महिलाओं का जेल भरो आंदोलन शुरू होगा । गौरतलब है कि महिलाओं के उत्पीडन को लेकर कैमूर क्षेत्र में राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच आंदोलनरत है । इस अंचल में आदिवासी और दलित महिलाओं को जंगलात विभाग के लोग छोटे छोटे मामलों में फंसा कर उनका उत्पीडन करते है । महिलाओं के आंदोलन के बाद पिछले साल मायावती सरकार ने इस तरह के सात हजार मुकदमों को वापस लेने का एलान किया था पर यह एलान भी राजनैतिक घोषणा की तरह कागजों में ही फंस कर रह गया । रस्म अदायगी के लिए लोक अदालत भी बैठी पर सौ डेढ़ सौ महिलाओं से जुर्म कबूल कराने बाद जुर्माना ठोका और छोड़ दिया। इन महिलाओं का अपराध था जंगल में बकरी चराने से लेकर सूखी लकडियां बटोरना । जिन महिलाओं पर जंगलात विभाग ने गंभीर धाराएँ लगा दी थी वे इस अदालत के दायरे से बाहर थी ।
अंतराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर सोनभद्र में उत्तर प्रदेश, झाड़खंड़ व बिहार के कैमूर क्षेत्र के हज़ारों आदिवासी दलित महिलाओं ने प्रदर्शन कर अपना सवाल उठाया साथ ही दंतेवाड़ा की आदिवासी अध्यापिका सोनी सोरी की गिरफतारी का कड़ा विरोध कर आंदोलन करने की चेतावनी दी।
महिलांए अपने गले में 5/26 रद्द करों, 5/26 मे हमें गिरफ्तार करों की तख्तियां लगा रखी थी।महिलाओं का कहना था कि वन विभाग ने उत्पीड़न की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। अब करो या मरों की स्थिति पैदा हो गई हैं। जमानत दार नहीं मिल रहे। बच्चे भूखे मर रहे हैं। ऐसे में अब हमारे आगे सिर्फ एक ही रास्ता बचा है, हम या तो सामूहिक रूप से आत्म हत्या कर ले या हथियार उठाकर माओवादी बन जाएँ । इस मौके पर शांता, रोमा, धनपति, राजकुमारी, धनमनिया, फूलबसिया, सोकालो, हुलसी, शंखा, गीता, शोभा और , मुन्नी ने महिलाओं के उत्पीडन का सवाल उठाया । इन महिलाओं ने कहा कि यह सभ्य समाज के लिए एक कलंक की बात है कि आज भी पुलिस अभिरक्षा में महिलाओं की किसी भी प्रकार से सुरक्षा मौजूद नहीं है । मानवाधिकार के सभी नियमों का खुले आम उल्लघंन कर छतीसगढ़ पुलिस ने संविधान में दिए गए तमाम प्रावधानों का मज़ाक उड़ाया है। जिसपर देश की शीर्ष न्याययिक व्यवस्था खामोश खड़े तमाशा देख रही है। गौरतलब है कि सोनी सूरी ने अपनी गिरफतारी के वक्त ही हाई कोर्ट दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश का पत्र द्वारा यह आशंका जताई थी कि अगर उन्हें छतीसगढ़ ले जाया गया तो उनके साथ कुछ भी हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने केस की सुनवाई की मांग किसी अन्य राज्य में की थी। लेकिन उनकी लिखे इस पत्र को दिल्ली हाई कोर्ट ने नज़रअंदाज किया और छतीसगढ़ पुलिस ने उन्हें रिमांड पर लेकर पूछताछ का बहाना कर उनके साथ वो अमानवीय कृत्य किए जिसे यह समाज शर्मसार हो गया है। लेकिन अभी तक देश की इस व्यवस्था में आदिवासी महिला की सुरक्षा की कहीं कोई पहल दिखती नज़र नहीं आ रही। यह आदिवासी समाज का तो अपमान है ही साथ ही महिलाओं का तो घोर अपमान है जिसे अपने आप को लोकतंत्र कहने वाला यह भारत महान जैसा देश किस तरह मूक दर्शक बने देख रहा है। जिस देश की राष्ट्रपति एक महिला हो, देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष महिला हो और चार प्रमुख राज्यों की मुख्यमंत्री महिला हो वहां भला इस अमानवीय कृत्य के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं हो रही, ऐसे अफसरों को फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए।
उरांव जनजाति की हुलसी देवी ने कहा कि जब शरद पवार पर पड़े एक थप्पड़ से सारी पार्टिया एक सुर में खड़ी हो गई तो सोनी सूरी जैसे मामलों में क्यों एक साथ खड़े हो कर इसका विरोध नहीं करती ये पार्टिया । इसलिए महिलाओं के प्रति हो रहे इस अमानवीय कृत्य से अब वो दिन दूर नहीं जब महिलाए सड़क पर इन नेताओं से हिसाब किताब चुकाएगी और थप्पड़ तो क्या लात घूसों की भी नौबत आ सकती है। साथ ही अंर्तराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर ही कैमूर क्षेत्र की महिलाओं ने वनविभाग के पंद्रह हजार से भी उपर फर्जी मुकदमों को रदद करने की चेतावनी दी और रदद न करने की सूरत में जेल भरो आंदोलन की धमकी दी। बाद में सोनभद्र के कलेक्टर विजय विश्वास पन्त के साथ बातचीत में तय हुआ कि कलेक्टर शासन स्तर पर इन फर्जी मुकदमों को वापिस करने के लिए पत्र लिखेगें।

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