Tuesday, December 6, 2011

अभिव्यकि की आजादी के नए खलीफा और सीमा आजाद

अंबरीश कुमार
लखनऊ ,दिसंबर । अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देने वाले नए खलीफाओं को सीमा आजाद याद है । वे अपने लिखे और पढ़े की वजह से जेल में है और कोई न्यू या ओल्ड मीडिया उनकी आजादी पर बहस नहीं करता । कोई उस महिला के पुलिसिया उत्पीडन और आजादी की चर्चा नही करता ।फेसबुक पर अराजक किस्म की टिप्पणियों और किसी की धार्मिक व निजी भावनाओं को आहत करने वाले फोटो का सवाल जब कपिल सिब्बल ने उठाया तो फ़ौरन एक शब्द उछाल दिया गया 'सेंसरशिप ' ।सिब्बल सफाई देते रहे और मीडिया इस शब्द को लेकर अन्ना आन्दोलन की तरह गजब की हेडिंग दिखने लागा ,मसलन 'देश की आवाज दबाने की कोशिश ,फेसबुक आंदोलन से डर गई सरकार आदि ।किसी महिला के नग्न फोटो ,शरीर के स्थान विशेष को लेकर की गई टिप्पणी और किसी के धार्मिक स्थल पर खास किस्म के जानवर की फोटो अगर अभिव्यक्ति की आजादी है तो इस नई आजदी की लड़ाई के नए योद्धाओं को यह मुबारक हो ।
सार्वजनिक शौचालय में भी कई लोग कला और विचारों की अभिव्यक्ति करते रहे है और करते रहेंगे । जिन्हें यह लड़ाई लड़नी हो वे लड़े और बहस करे ।पर यह जरुर याद दिलाना चाहेंगे कि राजनैतिक साहित्य की कुछ पुस्तकों को रखने के लिए पत्रकार सीमा आजाद जेल में है और अभिव्यक्ति की आजादी का कोई बड़ा पुरोधा उनकी लड़ाई लड़ने कभी सामने नहीं आया । चाहे वे टीवी चैनल पर आज बहस करने वाले हो या विश्व में सबसे ज्यादा अख़बार बेचने का दावा करने वाले हों । सीमा आजाद एक खास विचारधारा पर अपने लिखे और पढ़े की वजह से जेल में है वे न तो गाली गलौज कर रही थी न किसी की फोटो बिगाड़कर खिल्ली उड़ने का काम कर रही थी,जो आज फेसबुक पर धड़ल्ले से चल रहा है और भाई लोग इसे न्यू मीडिया की ताकत मान रहे है।मैंने एक सज्जन को देखा जो इलाहाबाद में छात्रों पर लाठी चार्ज के लिए भी कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बता रहे थे क्योकि मायावती का नाम लेते ही पास के थाने का दरोगा उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ बता सकता था । रीता बहुगुणा जोशी ने ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल मायावती के लिए किया और जेल भेज दी गई । इसलिए हर किस्म की अभिव्यक्ति की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती यह जरुर समझना होगा ।

1 comment:

  1. अगर हम कहें की सीमा आजाद पडने की वजह से नहीं बल्कि "दूसरी विचारधारा" को पडने से जेल में तो गलत नहीं होगा. और बाकी लोग जो अभ्यक्ति की आजादी के नाम पर ची-पें करते रहते हैं वो भी इसी विचारधारा के कारन चुप हैं.

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