Sunday, May 27, 2012

आलोक तोमर की स्मृति में पत्रकारिता की भाषा पर चर्चा

प्रयाग पांडेय
नैनीताल, २७ मई । मौजूदा दौर में जितनी ज़रूरत पत्रकारों के प्रति अपना नजरिया बदलने की है उतनी ही ज़रूरत मीडिया की भाषा में सकारात्मक बदलावों की भी है।यह बात आज यहाँ मीडिया की भाषा पर केन्द्रित एक परिचर्चा में उभर कर आई । यह परिचर्चा उमागढ़ स्थित महादेवी सृजन पीठ में हुई जिसमे देश के विभिन्न हिस्सों से आए पत्रकारों और बुद्धजीवियों ने हिस्सा लिया । वक्ताओं ने परिचर्चा मीडिया की मौजूदा भाषा को लेकर एक प्रयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया। अस्सी के दशक में पत्रकारिता की भाषा बदलने में प्रभाष जोशी और जनसत्ता के योगदान को जहाँ महत्वपूर्ण बताया गया वही फिर नए प्रयोग की जरुरत भी महसूस की गई । छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने परिचर्चा का संचालन करते हुए मीडिया की भाषा को लेकर एक विमर्श की ज़रूरत बताई। सोनी ने कहा- ‘मौजूदा दौर में जितनी ज़रूरत पत्रकारों के प्रति अपना नजरिया बदलने की है उतनी ही ज़रूरत मीडिया की भाषा में सकारात्मक बदलावों की भी है। भाषा को लोक-संस्कारों से सींचने और भाषा को लेकर टकराव मोल लेने की ज़रूरत है। मुंबई से आए सीएनबीसी आवाज़ के एक्जीक्यूटिव एडिटर आलोक जोशी ने कहा-भाषा का सबसे पहला और संभवतः आखिरी उद्देश्य भी सम्प्रेषण का ही होता है। कोई भी भाषा अगर सम्प्रेषण नहीं कर पा रही तो वो भाषा है। मौजूदा दौर में जब की मीडिया लगातार विशालकाय हो रहा है, ये मुश्किल है की एक-एक व्यक्ति को भाषा और ज्ञान के स्तर पर जांचा जा सके इसलिए पत्रकारों और संपादकों को काम के समय ही भाषाई स्तर पर सुधार करने की ज़रूरत है। परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकारों ने नयी पीढ़ी से निराशा और उम्मीदों पर भी अपना पक्ष रखा। न्यूज़ ट्वेंटी फोर के प्रबंध संपादक अजीत अंजुम ने भाषा को पठनीय बनाने की ज़रूरत पर जोर दिया। अंजुम ने कहा- ‘मीडिया की भाषा को लेकर फिर से विचार किये जाने की ज़रूरत है. क्यूंकि आज के दौर में जब अखबारों के कई संस्करण निकल रहे हैं एक रिपोर्टर के लिए भाषा के स्तर पर पहचान बना पाना मुश्किल हो गया है।‘ उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मंस्येरा ने टीवी की भाषा को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा- टीवी की भाषा को लेकर नए लोगों को जिस तरह कि ट्रेनिंग ज़रूरत है वो उन्हें नहीं मिल रही है। पत्रकार मयंक सक्सेना ने भाषा की आज़ादी की वकालत की। मयंक ने कहा- मीडिया की भाषा को स्वतंत्र होना चाहिए। उसमें एक रिपोर्टर के पास प्रयोग की आज़ादी होनी चाहिए । महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने इससे असहमति जताई। राय ने कहा- भाषा की आज़ादी के नाम पर हिंदी के मानक स्वरुप को खारिज नहीं किया जा सकता। हालाँकि पत्रकार तमाम दबावों के बीच काम करता है इसलिए उससे रचनात्मक लेखन कि उत्कृष्टता कि उम्मीद करना अन्याय होगा। उन्होंने पत्रकारिता की भाषा को लेकर नए सिरे से बहस शुरू करने पर जोर दिया ।पत्रकार गीताश्री ने भी मीडिया की मौजूदा भाषा को लेकर बदलाव की जरुरत पर जोर दिया । लखनऊ से आए पत्रकार हिमांशु बाजपेयी ने मीडिया कि भाषा में प्रयोगों पर जोर दिया। हिमांशु ने कहा- हर खबर को लिखते समय उस खबर के मिज़ाज को समझना ज़रुरी है। परिचर्चा में प्रभाष जोशी से लेकर आलोक तोमर के भाषाई योगदान पर भी चर्चा हुई। पत्रकारिता का भाषा को लेकर राष्ट्रीय बहस के लिए राज कुमार सोनी को एक व्यापक प्रस्ताव तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई ताकि इस दिशा में ठोस पहल हो सके ।jansatta

2 comments:

  1. जिस प्रस्ताव की चर्चा हो रही है वह सोनी की जगह हिमांशु तैयार करेंगे .

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  2. Ambrish ji, recently I came across a PTC given by a respected Hindi channel reporter on IPL mess. "IPL ki bhad pit rahi hai" the language on live TV left me shocked....

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