Wednesday, May 2, 2012

जयप्रकाश आंदोलन की जुझारू नेत्री नूतन नहीं रही

जयप्रकाश नरायण के नेतृत्त्व में हुए बिहार आंदोलन की जुझारू साथी नूतन नहीं रही । वे नूतन जो सत्तर के दशक में जब लड़कियां आंदोलन से जुड़ने के बारे में जल्दी सोचती नहीं थी तब वे जमींदार पिता के विरोध के बावजूद जयप्रकाश आंदोलन में कूदी और एक नहीं कई मोर्चों पर लड़ी । आंदोलन के साथी हेमंत के साथ जब उन्होंने सहजीवन की घोषणा की तो उस दौर के जनसत्ता में प्रभाष जोशी ने उनके सह जीवन पर सम्पादकीय लिखा और वह देश भर में चर्चित हुआ । नूतन ने पटना में अंतिम सांस ली । अंतिम लडाई वे कैंसर से लड़ रही थी । कुछ समय पहले ही मैंने अपने ब्लाग पर जो लिखा था वह एक बार फिर याद आ गया । कैंसर से जूझ रही है नूतन जयप्रकाश आंदोलन का युवा चेहरा रहीं नूतन कैंसर से जूझ रही हैं। कल ही गंगा मुक्ति आंदोलन के अग्रणी नेता रहे अनिल प्रकाश ने फोन पर बताया कि वे लखनऊ आ रहे हैं और फिर मुंबई जाएंगे। मैंने पूछा कि मुंबई में कोई बैठक है क्या, तो उनका जवाब था - नहीं, नूतन जी को कैंसर हो गया है और उनका इलाज चल रहा है। कैंसर का नाम सुनते ही सहम गया। अब यह बीमारी डराने लगी है। आलोक तोमर याद आए। पापा का भी दिल्ली में कैंसर का इलाज हो रहा है। इस बीमारी का नाम सुनते ही डर लगता है। नूतन का नाम सुनते ही तीस साल पुराना समय आँखों के सामने से घूम गया। नूतन जी से मेरी पहली मुलाकात बिहार के बोधगया आंदोलन के दौरान संपूर्ण क्रांति मंच के एक कार्यक्रम में हुई। बाद में जब पटना में जयप्रकाश नारायण की बनाई छात्र संघर्ष युवा वाहिनी के कार्यक्रमों में जाता तो कंकड़बाग़ स्थित हेमंत-नूतन के घर पर ही रुकता। हेमंत जी भी जयप्रकाश आंदोलन के अग्रणी छात्र नेताओं में रहे है जो बाद में पत्रकारिता से जुड़े। सत्तर के दशक में बिहार जैसे राज्य में एक जमींदार परिवार की किसी लड़की का समाज परिवर्तन के आंदोलन से जुड़ना और संघर्ष करना बहुत आसन नहीं था। पर नूतन ने परिवार की चिंता किए बगैर जयप्रकाश आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और तमाम लड़कियों के लिए रोल माडल बनी थी। जयप्रकाश नारायण भी नूतन के संघर्ष से प्रभावित थे। जनसत्ता अखबार में प्रभाष जोशी ने हेमंत और नूतन के सहजीवन के एलान पर संपादकीय लिखा था। नूतन की बहन किरण भी वाहिनी से जुड़ी और काफी काम किया। हेमंत, नूतन और किरण से आखिरी मुलाकात भी दिल्ली में हुई थी। हेमंत और नूतन तो आशीर्वाद एपार्टमेंट वाले घर पर मिलने आए थे तो किरण बहादुरशाह जफ़र मार्ग स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग में आई थी। उनकी बेटी को कैंसर हो गया था और इलाज के लिए दौड़ भाग कर रही थी। अस्सी के दशक में जब छात्र युवा संघर्ष वाहिनी में सक्रिय था तो कई बार चेन्नई शिविर में जाना हुआ। किरण और विजय के साथ भी एक यात्रा की। उस दौर में जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास मद्रास में प्रभावती देवी के नाम से गुडवान्चरी आश्रम के जरिए करीब तीस गांवों की महिलाओं और बच्चों के लिए कई कार्यक्रम कर रहे थे। आश्रम काफी बड़ा था और वाहिनी के शिविर में आने वाले पचास साठ लोग आसानी से रुक जाते थे। पर मेरा रुकना शोभाकांत जी के ५९ गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट वाले आवास पर होता था जो काफी बड़ा था और मद्रास स्टेशन के करीब था। शोभाकांत जी का घर रामनाथ गोयनका के घर के पास था और उनकी घनिष्ठ मित्रता थी। जयप्रकाश नारायण और रामनाथ गोयनका के बीच की कड़ी शोभाकांत दास ही थे। दरभंगा के रहने वाले शोभाकांत दास महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई से जुड़े। अंग्रेजों के दौर में जेल गए और सरगुजा रियासत की जेल तोड़कर भाग निकले थे। बाद में वे जेल में बंद जयप्रकाश नारायण की चिट्ठी खाना देने के बहाने क्रांतिकारियों तक पहुंचाते। कमउम्र की वजह से उनपर कोई शक भी नहीं करता। उन्हीं शोभाकांत जी ने अस्सी के दशक में मद्रास से हिंदी में एक पत्रिका निकलने का प्रस्ताव हमारे सामने रखा जिस में वाहिनी के भी कई साथी जुड़ते। इसी सिलसिले में मैं, विजय और किरण के साथ मद्रास गए। शुरुआती बैठक के बाद विजय गया लौट गए थे। हम लोग पत्रिका के स्वरूप पर चिंतन कर रहे थे। तभी शोभाकांत जी ने निर्देश दिया कि मद्रास और आसपास की जगह को जानने-समझने के लिए हम लोगों को पहले घूमना चाहिए। उन्होंने अपने एकाउंटटेंट से आने जाने और रहने के इंतजाम के आलावा नकद भी दिलवाया। शुरुआत पांडिचेरी से हुई जहाँ समुंद्र तट पर बने अरविंदो आश्रम के गेस्ट हाउस में रुकने का इंतजाम किया गया था। तब पांडिचेरी का समुंद्र तट पत्थरों से घिरा नहीं था और रेत पर रात बारह बजे तक लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। पर किरण को बाहर के होटलों में बना दक्षिण भारत का खाना रास नहीं आ रहा था लिहाजा मद्रास लौट आए और शोभाकांत जी के घर का दाल भात खाकर संतुष्ट हुए। कुछ वजहों से वह पत्रिका शुरू नहीं हो पाई जबकि शोभाकांत जी हर व्यवस्था करने को तैयार थे। पिछली बार जब चेन्नई में जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर उन्होंने उसी गुडवान्चरी आश्रम में कार्यक्रम रखा तो प्रभाष जोशी के साथ मुझे भी बुलाया। प्रभाष जी स्वास्थ्य की वजह से नहीं जा पाए थे। मैं भोपाल से सीधा चेन्नई पहुंचा था। शोभाकांत जी ने फिर शिकायत की कि अगर तब पत्रिका निकल जाती तो आज वह काफी आगे पहुँच सकती थी। मैंने जवाब दिया - आप ही ने मुझे बंगलूर का अखबार छोड़कर रामनाथ गोयनका के पास भेजा था जिसके बाद मै कभी कही नहीं गया और एक्सप्रेस परिवार का ही हिस्सा बना रहा हूँ। वे निरुत्तर थे। शोभाकांत जी उस दौर के ऐसे गाँधीवादी नेताओं में बचे है जो आज भी अपने व्यवसाय की आमदनी का बड़ा हिस्सा आम लोगों पर खर्च करते हैं। वाहिनी के किसी भी साथी की बीमारी या किसी तरह की अन्य समस्या पर वे आर्थिक मदद करते रहे हैं। चेन्नई में उनके बिहार भवन में ज्यादातर वे ही लोग रुकते है जो बिहार से इलाज के लिए चेन्नई आते हैं। इन में जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े लोगों की संख्या ज्यादा होती है। आज जब नूतन को कैंसर होने की जानकारी मिली तो अनिल प्रकाश से यही पूछा कि इलाज में पैसे की कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है, जवाब था उनके घर के लोग काफी मदद कर रहे है और हेमंत भी कुछ इंतजाम किए है। जयप्रकाश आंदोलन से निकले ज्यादातर लोग आज सत्ता का सुख भोग रहे हैं पर एक बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने अपना जीवन जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर समाज को समर्पित कर दिया। नूतन जी ऐसे ही क्रांतिकारी महिला हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम जैसे तमाम लोग बदलाव की राजनीति से जुड़े थे। यही कामना है कि वे जल्द से जल्द स्वस्थ हो।

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