Monday, May 14, 2012

कई और कार्टूनों को हटाने की मांग

वंदिता मिश्रा
नई दिल्ली, मई। राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की एक किताब में छपे डा. भीमराव आंबेडकर के कार्टून पर शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में खासा हंगामा हुआ था। बहरहाल, उस समय यही समझा गया था कि सांसदों का गुस्सा दलितों के मसीहा समझे जाने वाले आंबेडकर के प्रति कथित असम्मान के खिलाफ था। तमिलनाडु की एक दलित पार्टी विदुथलाई चिरुथइगल के सांसद थोल थिरुमावलवन ने पहली बार संसद का ध्यान इस मुद्दे की ओर आकृष्ट किया। मायावती और रामविलास पासवान जैसे कद्दावर दलित नेताओं ने इस मुद्दे को लपकते हुए तीखा गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने कार्टूनिस्ट और एनसीईआरटी की किताब में इस कार्टून को छापने की इजाजत देने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। संसद में हंगामे के अगले ही दिन पुणे स्थित एक दलित संगठन ने पुणे विश्वविद्यालय के परिसर में सुहास पलशीकर के दफ्तर में तोड़फोड़ की। हालांकि पाठ्यपुस्तकों में शैक्षणिक सामग्री छापने के जिम्मेदार एनसीईआरटी के दोनों मुख्य सलाहकारों पलशीकर और योगेंद्र यादव ने शुक्रवार को ही इस्तीफे दे दिए थे। सांसद एनसीईआरटी की किताबों में सिर्फ आंबेडकर के कार्टून पर ही नाराज नहीं हैं। कई और कार्टूनों को लेकर भी उनकी त्योरियां चढ़ी हुई हैं। वे जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सवर्ण नेताओं और मनमोहन सिंह के कार्टूनों से भी नाराज हैं। आंबेडकर के कार्टून पर विवाद से कुछ दिन पहले ही बच्चों पर संसदीय फोरम के सदस्यों ने आठ मई को एनसीआईआरटी के पदाधिकारियों के साथ बैठक में पाठ्यपुस्तकों में छपे कई कार्टूनों पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। उन्होंने एनसीईआरटी की किताबों के प्रकाशन के लिए जिम्मेदार लोगों और खासतौर से इसके अध्यक्ष, मुख्य सलाहकार, सलाहकार और संकाय के सदस्यों के साथ मई के तीसरे हफ्ते में मुलाकात का वक्त देने के लिए जोर डाला। इस फोरम का गठन मार्च, 2006 में किया गया था और इसमें दोनों सदनों के कुल 40 सदस्य शामिल हैं। लोकसभा के स्पीकर इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं। हालांकि यह फोरम कोई आधिकारिक संसदीय संस्था नहीं है और ना ही इसके पास किसी व्यक्ति या दस्तावेज को तलब करने के अधिकार हैं। सामाजिक विज्ञान संकाय में शिक्षा विभाग की विभागाध्यक्ष सरोज यादव ने एनसीईआरटी की किताबों से संबद्ध एक पर्यवेक्षक को लिखी चिट्ठी में कहा था कि फोरम के कई सदस्य सांसद ऐसा महसूस करते हैं कि इन कार्टूनों में राजनीतिज्ञों के प्रति असम्मान दर्शाया गया है और उनकी गलत और नकारात्मक तस्वीर पेश की गई है। बैठक में कई सांसदों की राय थी कि स्कूली किताबों में राजनीतिज्ञों की नकारात्मक छवि पेश करने से कच्ची उम्र के बच्चों के मन में लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा घट सकती है और राजनीतिज्ञों के प्रति असम्मान या अविश्वास की भावना पनप सकती है। यादव की इस चिट्ठी की एक प्रति ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पास भी है। इसमें वे एक-दो कार्टूनों की ओर इशारा करते हुए कहती हैं कि शायद इन्हीं की वजह से सांसदों का गुस्सा भड़क उठा है और शायद इसीलिए वे तत्काल प्रभाव से इस तरह की चीजों को हटाने और इन किताबों के वितरण पर रोक लगाने की इच्छा जता रहे हैं। सांसदों की नाराजगी खासतौर से एनसीईआरटी की नौवीं कक्षा की राजनीति शास्त्र की किताब में छपे आरके लक्ष्मण के एक कार्टून को लेकर है। इसमें दिखाया गया है कि चुनाव से पहले नेता जनता से वोटों की भीख मांग रहे हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद अब जनता उनके सामने भीख मांग रही है। बैठक में सांसदों के साथ हुई चर्चा का सारांश देते हुए यादव ने लिखा है कि राजनीतिज्ञों का मानना है कि इस तरह की धारणाएं सच्चाई से परे हैं। लिहाजा इन्हें पाठ्यपुस्तकों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।इंडियन एक्सप्रेस

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