Tuesday, May 22, 2012

वो फेसबुक, हमने तराशा है जिसे

हरजिंदर एसोशिएट एडीटर, हिन्दुस्तान मार्क जकरबर्ग ने क्या किया? दुनिया भर के लोगों को दोस्ती बढ़ाने, रिश्ते बनाने, शेखी बघारने और भड़ास निकालने की थोड़ी-सी जमीन दी और अपने लिए पूरा आसमान जीत लिया। उनकी कंपनी फेसबुक ने शेयर बाजार में उछाल भरने के बाद भले ही बहुत बड़ा तीर न मारा हो, लेकिन उसकी हैसियत का आकलन 104 अरब डॉलर किए जाने से सब हैरत में तो हैं ही। न्यूयॉर्क के इस 28 वर्षीय नौजवान की आठ साल पुरानी कंपनी ने मीडिया व्यवसाय की परंपरागत कंपनियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। फेसबुक के इस वैल्युएशन के सामने टाइम वार्नर जैसी मीडिया की परंपरागत धुरंधर भी बौनी दिखने लग गई हैं। फेसबुक में ऐसा क्या है? फेसबुक कोई तकनीकी कंपनी नहीं है। हालांकि वह इंटरनेट पर मौजूद आधुनिकतम सोशल नेटवर्किग साइटों में से एक है, लेकिन उसके पास कोई बहुत बड़ी तकनीक नहीं है। वह जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, वह पहले से ही मौजूद थी और हो सकता कि कुछ कंपनियां उससे भी बेहतर तकनीक या सॉफ्टवेयर कोड से अपनी वेबसाइट बना रही हों। फिर ऐसा क्या है फेसबुक के पास, जो उसे सौ अरब डॉलर से बड़ी बाजार हैसियत वाली कंपनी बनाता है? फेसबुक बस एक मंच है, जिसके पास अपना कुछ नहीं है। फेसबुक में ढेर सारी सामग्री है, लेकिन वह मार्क जकरबर्ग और उनकी कंपनी में काम करने वाले लोगों ने न तो तैयार की है और न वह उनकी है। फेसबुक में जो कुछ भी है, वह हमारे-आपके जैसे लोगों का ही है। वहां रवीश की उलटबांसियां हैं, अंबरीश की यात्राए हैं, सतीश की भावनाएं हैं, महेश का गुस्सा है, रमेश के सरोकार हैं, चंचल के चित्र हैं, मंगल के मित्र हैं, किसी की कविताएं हैं, किसी की मंत्रणाएं हैं, स्टेटस हैं, अपडेट हैं- और इन्हीं सब ने मिलकर फेसबुक की बाजार हैसियत को सौ अरब डॉलर से भी ऊपर पंहुचा दिया है। अब इसे देखने के हमारे पास दो तरीके हैं। पहला तरीका यह है कि हम यह मान लें कि हमारी इन्हीं सब चीजों से मार्क जकरबर्ग ने अपनी दुकान सजा ली और अब दुनिया के 29वें सबसे अमीर व्यक्ति बन बैठे हैं। इस धंधे में लगी उनकी अपनी पूंजी कोई बहुत ज्यादा नहीं है और उनकी मेहनत पर शक न भी किया जाए, तो कुल जमा आठ साल की ही मेहनत उसमें है। लेकिन इसे दूसरे नजरिये से भी देखना होगा। महेश, रमेश, सुरेश वगैरह ने अभी तक जो भी सामग्री फेसबुक पर डाली है, अगर उसे वे लेकर परंपरागत मीडिया के पास जाएं, तो हो सकता है कि वहां कोई उसकी कीमत कौड़ियों के भाव भी न लगाए, लेकिन वही सामग्री जब फेसबुक पर आती है, तो फेसबुक के वैल्युएशन को सौ अरब डॉलर के ऊपर पहुंचा देती है। फेसबुक जो कुछ भी है, उस मार्क जकरबर्ग के फितरती दिमाग की एक उपज है, जो हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सका था। जकरबर्ग ने हमें एक भरोसेमंद मंच दिया है, लेकिन इससे हमारी-आपकी सामग्री की भूमिका कम नहीं होती, क्योंकि अंत में हमने ही फेसबुक को आगे बढ़ाया और महत्वपूर्ण बनाया है। यह मीडिया का नया चेहरा है, जिसे यूजर्स जेनरेटेड कंटेंट के नाम से जाना जाता है। यानी ऐसा मीडिया, जहां पाठक एक पाठक भी होता है और साथ ही लेखक भी। आप दूसरों का लिखा पढ़ते हैं और आप जो लिखते हैं, उसे दूसरे पढ़ते हैं। सिर्फ लिखना-पढ़ना ही नहीं, गीत-संगीत, चित्र, फोटोग्राफी और फिल्म तक के लिए इसमें जगह है। आप चाहें, तो इसे सहकारी मीडिया भी कह सकते हैं। फेसबुक ऐसे मीडिया का पहला उदाहरण नहीं है। इसका ज्यादा सफल और ज्यादा महत्वपूर्ण उदाहरण विकीपीडिया है। फर्क सिर्फ इतना है कि विकीपीडिया ने किसी कारोबार की शक्ल नहीं ली और वह दान पर चलने वाली एक वेबसाइट भर बनकर रह गई। यह बात अलग है कि इस कोशिश में उसने छपे हुए एनसाइक्लोपीडिया के पूरे कारोबार को इतिहास की एक चीज बनाकर रख दिया। फेसबुक ने कारोबार का रास्ता अपनाया और बाजार में झंडे गाड़ दिए। फिलहाल असल मुद्दा फेसबुक में हुआ भारी निवेश है। फेसबुक को लेकर पिछले दिनों निवेशकों में जो उत्साह दिखा, वह परंपरागत मीडिया को हैरत में डालने वाला था। आखिर निवेशकों ने इस छोटी-सी कंपनी में ऐसा क्या देखा- उस कंपनी में, जिसने एक बड़ा ब्रांड भले ही बनाया हो, लेकिन अभी कोई बहुत ज्यादा मुनाफा कमाना भी शुरू नहीं किया? वैसे शेयर बाजार आम तौर पर किसी कंपनी के कारोबार पर कम, उसकी संभावनाओं पर ज्यादा दांव लगाता है। पश्चिम के बाजार और वहां की कंपनियों की इस समय जो स्थिति है, उसमें कोई आश्चर्य नहीं कि निवेशकों को इस समय सबसे ज्यादा संभावनाओं वाली कंपनी फेसबुक ही लग रही हो। लेकिन सवाल यह है कि फेसबुक की संभावनाएं क्या हो सकती हैं? पाठकों की जिस सामग्री की बात हम कर रहे हैं, फेसबुक की सारी संभावनाएं दरअसल इसी में निहित हैं। इस सामग्री का विश्लेषण कर हमारी पसंद-नापसंद, हमारी चाहत, हमारी खुशी, हमारे गम और हमारे गुस्से का एक बहुत बड़ा डाटाबेस तैयार हो सकता है। मसलन, अगर एक कार बनाने वाली कंपनी यह जानना चाहे कि आजकल लोग किस तरह की कार पसंद कर रहे हैं या लोग किस तरह की कार खरीदने की चाहत रखते हैं, तो उसके लिए यह डाटाबेस बहुत काम का हो सकता है। और इससे भी बढ़कर अगर वह कंपनी उन सब लोगों के नाम और ई-मेल चाहे, जो कार खरीदने की बात करते हैं, या कारों की चर्चा करते हैं, या कार कंपनियों की साइटों पर जाते रहते हैं, तो यह डाटाबेस उसकी काफी मदद कर सकता है। अभी तक फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी का आम तौर पर खयाल ही रखा है, उनके आंकड़े बाजार में बेचे गए हों, ऐसे बहुत ज्यादा आरोप नहीं हैं। लेकिन अब जितना बड़ा निवेश फेसबुक में गया है, उस अनुपात में उस पर मुनाफा कमाने का दबाव भी बढ़ेगा ही। आने वाले वक्त में सोशल नेटवर्किग का भविष्य इससे तय होगा कि फेसबुक इस दबाव का मुकाबला किस तरह से करता है। अगर वह चाहता है कि उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी के कारोबार की नौबत न आए, तो उसे अपनी कमाई के तरीके खोजने होंगे। उसे नए रेवेन्यू मॉडल विकसित करने होंगे, जो अभी उसके पास बहुत कम हैं, क्योंकि प्राइवेसी बेचकर फेसबुक अपनी वह साख खो देगा, जिसने उसके वैल्युएशन को सौ अरब डॉलर तक पहुंचा दिया है। फिलहाल तो यही फेसबुक का स्टेटस अपडेट है, इसे आप लाइक करें, शेयर करें या फिर अपने कमेंट से नवाजें। हिंदुस्तान में प्रकाशित हरजिंदर का लेख .

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