Wednesday, February 13, 2013

राज कुमार सोनी

अपने मोहल्ले की लड़कियां एक लड़की सीखने जाती है सिलाई मशीन से घर चलाने का तरीका एक लड़की दिनभर सुनती है लता मंगेशकर का गाना एक लड़की सुबह भाई को स्कूल छोड़ती है और.. पिता को अस्पताल एक लड़की छत पर खड़े होकर पतंग को कटता देख लगती है रोने एक लड़की शिकाकाई से धोए बालों को मुस्कुराकर सुखाती है आंगन में एक लड़की छज्जे पर केवल कंघी-चोटी करते हुए ही आती है नजर एक लड़की हटती ही नहीं है. आइने के सामने से एक लड़की छोटी सी छोटी बात पर हो जाती है परेशान और पोंछते रहती है पसीना एक लड़की जरा सी गलती पर गिलहरी की तरह कुतरती है दांतो से नाखून एक लड़की छोटे बच्चों को पढ़ाती है ट्यूशन एक लड़की हर रोज चढ़ाती है तुलसी को एक लोटा पानी एक लड़की किसी न किसी घर थाली पर अपने हुनर का घूंघट ओढ़ाकर ले जाती है मीठे-मीठे पकवान एक लड़की हर तीसरे दिन किसी अन्जान आदमी को गाना सुनाती है सितार बजाती है और बताती है चिड़ियां उसने बनाई है तोता भी उसका बनाया हुआ है. मेरे मोहल्ले में कुछ लड़कियां चश्मा पहनती है कुछ मेहन्दी लगाते रहती हैं आप सोच रहे होंगे कि अच्छा लड़कीबाज आदमी है जो लड़कियां देखते रहता हैं क्या करूं साहब.. जिस मोहल्ले में रहता हूं वहां कुछ इसी तरह की लड़कियां रहती है इन लड़कियों में से कोई न कोई लाल रिबन बांधकर झम से आ खड़ी होती है मोटर साइकिल के सामने और थमा जाती है किसी न किसी ईश्वर का प्रसाद. मैं अपने मोहल्ले की लड़कियों को घूरता नहीं... देखता हूं हर रोज ... देर रात जब मैं लौटता हूं अखबार के दफ्तर से तब लड़कियां सीरियल देखकर सो चुकी होती हैं मैंने अब तक मोहल्ले की किसी भी लड़की को काली कार से उतरते हुए नहीं देखा है. इस कविता के लिखने वाले के बारे में भी कुछ कहना चाहता हूँ । अजित अंजुम कुछ दिन पहले जब गीताश्री के साथ घर तो कहा कि कुछ औरों के बारे में भी लिखूं कुछ लाइनों से शुरुआत गीताश्री से की जिनपर लिखने को तो पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है । खैर यह सुझाव अपने को अच्छा लगा और सोचा है बारी बारी से बहुत से लोगों पर लिखूंगा । वर्ष 2000 में जब रायपुर में इंडियन एक्सप्रेस की जिम्मेदारी सँभालने पहुंचा तो कुछ ही दिन में जनसत्ता का रायपुर संस्करण निकालने की भी जिम्मेदारी मिली और जब लिखित परीक्षा के बाद साक्षात्कार ले रहा था तभी दुर्ग-भिलाई के एक नौजवान से मुलाकात हुई जिसका लिखा सबसे अलग किस्म का था और मैंने पूछा आप कब से ज्वाइन कर सकते है ,इस पर उसने कुछ संकोच के साथ कहा -काम क्या क्या करना होगा तो मेरे समझ में नहीं आया और मैंने कहा ,जब संवाददाता रखा जा रहा है तो खबर करनी होगी और क्या करेंगे । इस पर उसने फिर सवाल किया कि क्या विज्ञापन भी लाना होगा तो बहुत कोफ़्त हुई उससे कहा कि इंडियन एक्सप्रेस का मार्केटिंग विभाग है संपादकीय विभाग का कोई सम्बन्ध नहीं होता । ये सज्जन थे ,बहरहाल मैंने उन्हें जब नियुक्त करने का फैसला किया तो साथ बैठे गोपाल दास ने कहा -अरे भाई साहब यह तो बड़ा डैंजरस किस्म का कम्युनिस्ट पत्रकार है आप गलत कर रहे है । बहरहाल अपनी आदत के हिसाब से जो फैसला किया उसमे किसी न सुनता हूँ न सुनी । सोनी जनसत्ता में आए और जब उनकीएक से ज्यादा ख़बरों पर नाम देना शुरू किया तो कई लोग भड़क गए जिनमे विजय बुधिया के चाचा से लेकर कई सहयोगी भी थे । अनिल सिन्हा भी । अनिल सिन्हा को प्रदीप मैत्र के कहने पर रखा गया था क्योकि वे नौकरी की तलाश में थे । सोनी ने जोरदार खबरे की और मुख्यमंत्री अजित जोगी उसी सब को लेकर नाराज भी हुए पर राजकुमार सोनी की प्रतिभा सामने आ चुकी थी । राजकुमार सोनी के खुद अपने बारे में लिखा है -दुनिया में आंखे खोलने की तारीख थी- 19 नवंबर। भिलाई इस्पात संयंत्र के कोकवन में काम करने वाले मजदूर पिता ने मुझे बेफिक्री से सोते हुए देखकर कहा-हमारी झोपड़ी में तो लाट साहब आ गया है. धीरे-धीरे नाम पड़ गया- राजकुमार. स्कूल से भागकर फिल्म देखने के शौक के चलते जैसे-तैसे शिक्षा पूरी हुई। गांधी डिवीजन लेकर बीकाम पास. कुछ साल लेखकों के मठों और गिरोह से जुड़कर कविताएं लिखी, लेकिन जल्द ही पता चल गया कि कम से कम कविताओं से तो पेट नहीं भरा जा सकता. कोरस, मोर्चा, घेरा, गुरिल्ला, देश जैसे नाटक लिखे. तमाम तरह की नौटंकियों से गुजरने के बाद फिलहाल कुछ सालों से सक्रिय पत्रकारिता में. देशबन्धु भोपाल, जनसत्ता में काम करने के बाद इन दिनों तहलका हिंदी में प्रमुख संवाददाता ( छत्तीसगढ़ ) की हैसियत से कार्यरत। एक आदिम इच्छा- हिंदी में सुपरहिट मसाला फिल्म बनाने की.।

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