Friday, February 8, 2013

स्वाद जो भूलता नहीं

अंबरीश कुमार पिछले कुछ सालों में बहुत यात्रा की और जगह जगह का पानी पिया ।बस्तर के जंगलों से लेकर वायनाड के रिसार्ट तक ।खुबसूरत समुद्री तट से लेकर हिमालय की वादियों तक ।जगह जगह के खानसामो का बनाया अद्भुत व्यंजन का स्वाद लिया पर कई जगह के खानसामों के हाथ का बनाया आज तक नहीं भूलता । बस्तर के जगदलपुर में जब गया तो शाम हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था ।जंगलात विभाग के एक पुराने डाक बंगले में रहने का इंतजाम था । आधा परिवार शुद्ध शाकाहारी है इसलिए मै और अम्बर ही सामिष श्रेणी के थे ।रायपुर से चलने से पहले ही हमेशा की तरह उन्होंने खाने के बारे में पूछ लिया गया था । खाने की मेज पर जब प्लेट लगने लगी तो बताया गया कि मशहूर कड़कनाथ बनवाया गया है जो डाक बंगले के बहुत बुजुर्ग खानसामा ने बनाया था ।ऐसा स्वाद चढ़ा की आज तक भूलता नहीं है और जब भी बस्तर गया कोशिश यही रही कि वह स्वाद मिल जाये पर नहीं मिला । बाद में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजनारायण मिश्र ने मुझे लखौली के पास एक गाँव में दावत दी जो वहां छत्तीसगढ़ी शैली में बनाए व्यंजनों की थी और खेत में तेजपत्ता के पेड़ के पास बैठकी भी चली । बहुत गौर से मैंने मसलों को भुने जाने से लेकर समूचा खाना बनते देखा और वह स्वाद आज भी याद है ।छत्तीसगढ़ में जगह जगह ताल तालाब है और बहुत अच्छी प्रजाति की मछलियां मिल जाती है और सिंचाई विभाग के एक पुराने डाक बंगले में मैंने खुद कई बार बनाया और कई मित्रों ने स्वाद भी लिया । प्रदीप मित्र से ,अल्लू चौबे लेकर राजकुमार सोनी और प्रकाश होता तक ।पर कई जगह का भोजन जो याद है उसमे कन्याकुमारी के विवेकानंद आश्रम का खाना नहीं भूलता ।मदुरै से जिस बस से चले थे वह ख़राब हो गई और किसी तरह रात साढ़े ग्यारह बजे कन्याकुमारी के विवेकानंद आश्रम पहुंचे ।तब वह जंगल जैसे माहौल में मुख्य कसबे से दूर था और कोई दूकान भी आसपास नहीं थी । पापा ने खाने के बारे में पता किया तो बताया गया अब खाना नहीं मिल सकता सिर्फ एक चांस है की गुजरात से जो तीर्थयात्री आ रहे है उनकी संख्या अगर ज्यादा नहीं हुई तो बुला लिया जाएगा । इस बिच हम लोग कमरे में चले गए सामान रखने के लिए । बहार हवा ठंडी थी और समुंद्र के पास में होने का अहसास करा रही थी तो नारियल के खड खडाते पत्ते रात का माहौल रहस्मयी बना रहे थे । इस बीच रिशेप्शन से खाने के लिए बुलाने एक लड़का आ गया ।भूख जमकर लगी थी । पंगत में नीचे बैठते ही पत्तल पर गर्म गर्म चावल और सांभर ,रसम के साथ कई किस्म की सब्जी और चटनी भी दी गई । बाद में मठ्ठा और केला भी ।वह खाना नहीं भूलता है । इतना सादा और स्वादिष्ट खाना लगा पहले कभी नहीं खाया । इसके बाद लक्ष्य द्वीप की राजधानी कवरेती जिस एमवी टीपू सुलतान जहाज से गए उसका खाना भी गजब का था ।इतनी लम्बी समुंद्री यात्रा पहली बार कर रहा था और सबसे उपरी मंजिल के एक फर्स्ट क्लास केबिन में थे । शाम को डेक पर कुछ देर बैठे फिर आराम करने चले गए । नीचे सविता और आकाश तो ऊपर की बर्थ पर मै । सोना बड़ा मुश्किल हो रहा था क्योकि लगता था पालने में सो रहा हूँ । नींद खुली तो खाने के लिए हाल में बुलाया जा रहा था जो डेक के साथ ही था । शाकाहारियों के लिए आलू टमाटर की सब्जी और चावल था तो दूसरा विकल्प मछली का था । मैंने मछली मांगी जो सरसों और टमाटर में बनी 'टूना ' मछली थी जो जापान में बहुत लोकप्रिय है और सबसे महँगी भी ।पहली बार मैंने स्वाद लिया तो हैरान रह गया क्योकि एक तो यह खट्टी थी दूसरे चिकन की तरह लचीली ।बाद में जब कवरेती और अगति से लेकर बांगरम द्वीप में रुक तो कई बार यह मीनू का हिस्सा बना । उस समय वह इसकी कीमत तीस रुपये किलो थी जो कोच्ची पहुँचते पहुँचते दो सौ रुपये किलो और अन्तराष्ट्रीय बाजार में सात सौ रुपये किलो हो जाती । वह स्वाद भी भूलता नहीं ।

No comments:

Post a Comment