Thursday, January 3, 2013

जंगल में बिखरा रणथंभौर दुर्ग का इतिहास

अंबरीश कुमार
सुबह के करीब पांच बजे जब बैरे ने टेंट के बाहर से चाय के लिए आवाज दी तभी नींद खुली । जिस जगह पर अपना तंबू लगा था उसी के ठीक पीछे से जंगल शुरू होकर दूर पहाड़ियों पर चढ़ जाता था । रात देर से सोए क्योकि सविता सामने ही लकड़ी की आग सेकते हुए राजस्थानी लोकगीत सुन रही थी और गायकों से कुछ गीतों की फरमाइश भी की । ठंड को देखते हुए मै टेंट के भीतर ही पढने बैठ गया । यह रणथंभौर राष्ट्रीय अभयारण्य से लगा राजस्थान पर्यटन विभाग का रिसार्ट था जहाँ काफी चहल पहल थी । ज्यादातर सैलानी सुबह छह बजे और फिर दोपहर दो बजे से शुरू होने वाले जंगल सफारी के इंतजाम में जुटे थे । इसकी बुकिंग भी महीनों पहले हो गई थी और अब फोटो आईडी के साथ टिकट की बारी थी ।अपनी बुकिंग नहीं थी इसलिए शाम को फारेस्ट अफसर साहू से बात हुई तो उन्होंने पूछा कि कैंटर से जायेंगे या जिप्सी से । हमने कैंटर को प्राथमिकता देते हुए सबकी फोटो आईडी के साथ अठारह सौ रुपए चार टिकर के रिसार्ट के मैनेजर को दिए तो उसने बताया कि सुबह छह बजे तैयार रहूँ । अब जब बैरे ने जगाया तो तैयारी शुरू हुई । कुछ देर बाद ही अपना कैंटर पोर्टिको में लग चूका था जिसपर चार पांच नव विवाहित जोड़े थे तो एक बुजुर्ग जोड़ा भी । जंगलात विभाग का एक गाइड भी ।तापमान करीब चार पांच डिग्री रहा होगा पर हवा बर्फीली थी । आम तौर पर नया साल समुंद्र के किनारे मनता रहा है पर इसबार राजस्थान आया और इस ठंढ का अंदाज नहीं था । बहरहाल कैंटर चलते ही ठंढ ने कहर ढाना शुरू किया । कुछ देर बाद जब उबड़ खाबड़ सड़क और झरनों नालों को पार करते हुए किले के सामने पहुंचे तो वहां मोर ,कबूतर और तोतों के झुण्ड नजर आए । कुछ मोर तो सामने किले के मुंडेर पर बंदरों के साथ बैठे हुए थे । अपने गाइड ने बताया कि रणथंभौर अभयारण्य का नाम मूल रूप से रणथंभौर दुर्ग के नाम पर है। अरावली -विंध्याचल पर्वत शृंखला के मध्य यह अभयारण्य और दुर्ग है जो पहले जयपुर रियासत की शिकारगाह रहा है। बाद में इसे टाईगर प्रोजेक्ट का दर्जा दिया गया। रणथंभौर बाघ परियोजना क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 1394 वर्ग किमी माना जाता है । ‘रणथम्भौर’ नाम ‘रण’ व ‘‘थम्भौर’’ दो पहाडियां से बना है। थम्भौर वह पहाडी है जिस पर रणथम्भौर का दुर्ग है और ‘रण ’ उसके पास ही स्थित दूसरी पहाडी है। रणथम्भौर का किला लगभग सात किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। रणथम्भौर दुर्ग देश का सबसे पुराने दूसरे नंबर का किला है जबकि चित्तौढ़ का किला पहला माना जाता है। इस किले का निर्माण सन् 944 में चौहान वंश के राजा ने करवाया था जिसपर अल्लाउदीन खिजली, कुतुबुद्दीन ऐबक, फिरोजशाह तुगलक और गुजरात के बहादुरशाह जैसे अनेक शासकों ने आक्रमण किए । यह इतिहास यहाँ बताया जाता है । बाद में हम्मीर महल के सामने वह जगह दिखाई गई जहाँ हजार महिलाओं ने ‘जौहर’ किया था। इस जौहर शब्द पर विवाद हो सकता है पर फिलहाल यहाँ आने वाले सैलानी को यही बताया जाता है । किला वाकई अद्भुत है और इतिहास भी रोमांचित करता है ।कई किस्से और कहानियां इस दुर्ग में दफ़न है । जैन मंदिर है तो अल्लाउदीन खिजली के दौर की एक मजार है तो उसके सामने कब्र भी । इस दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का भव्य मंदिर स्थित हैं।जहाँ लोग विवाह का पहला न्योता भी देते है ।दुर्ग में गुप्त गंगा, बारहदरी महल, हम्मीर कचहरी, चौहानों के महल, बत्तीस खंभों की छतरी आदि भी हैं। इस दुर्ग का वास्तुशिल्प तो देखने वाला है ही पर कई बार आप इतिहास में लौट जाते है और कल्पना में युद्ध के दृश्य उभरते है खासकर जब गाइड इस तरह का ब्यौरा देता है। अचानक ध्यान तब टूटा जब कैंटर झटके से रुका और बाघ के पैरों के ताजा निशान दिखाते हुए बताया गया कि अभी अभी वह यहाँ से गुजरा है । इससे पहले आगे जा रही जिप्सी के गाइड ने बाघ गुजरने की जानकारी दी थी । फिर जंगल के अलग ट्रैक पर निकले तो हिरन और सांभर का झुण्ड सामने था । जंगल भी देखने वाला । कही पेड़ों के घने विस्तार तो कही झरनों से उठता पहाड़ । अचानक किंग फ़िशर दिखी तो रास्ते में स्परफाइल मोर, ग्रेट इंडियन हॉर्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल और चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल भी दिखे । एक बड़ा पक्षी तो कैंटर की मुंडेर पर लगातार जमा रहा और अम्बर ने उसकी कई फोटो ली । इस जंगल के ऊंचाई वाले हिस्सों में तेंदुआ दिख जाता है तो लकड़बग्घा, सांभर, चीतल,नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा लगातार नजर आते है हैं। जहाँ पानी दिखा वहां मगरमच्छ भी मिला । करीब चार घंटे की उबड़ खाबड़ ट्रैक की यात्रा ने देह के सभी नट बोल्ट हिल दिए थे । रिसार्ट पहुँचते ही रेस्तरां में तैयार नाश्ते के साथ ही जयपुर लौटने की तैयारी शुरू हो गई ।

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