Tuesday, January 22, 2013

फिर कट्टरपंथी ताकतों की धुरी बन रहा है अयोध्या

अंबरीश कुमार लखनऊ , 22 जनवरी। कट्टरपंथी ताकते सिर उठाने लगी है । लखनऊ से लेकर अयोध्या तक इसकी तपिश महसूस होने लगी है । अब एक फिल्म को लेकर माहौल गरमा रहा है । जिसे लेकर प्रदेश के रंगकर्मी ,सामाजिक और मानवाधिकर कार्यकर्त्ता से लेकर प्रेस कौंसिल आफ इंडिया तक इसे लेकर आगाह कर चुका है । अयोध्या और फैजाबाद इसकी धुरी बन रहा है जहाँ अल्पसंख्यको पर कई हमले भी हुए है । अयोध्या फिर बारूद के ढेर पर बैठा नजर आ रहा है । खास बात यह है कि मीडिया का एक हिस्सा फिर पुरानी भूमिका में लौटता दिख रहा है जो नब्बे के दशक में वह निभा चुका है । आनंद पटवर्धन की फिल्म राम तेरे नाम के बहाने कट्टरपंथी ताकते फिर माहौल बिगाड़ रही है । अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के आयोजकों का कहना है की अयोध्या/ फैजाबाद का मीडिया का एक बड़ा हिस्सा अपनी पेशागत नैतिकताओं के विरुद्ध निहायत गैरजिम्मेदाराना,पक्षपाती, शरारती, षडयंत्रकारी, सांप्रदायिक और जनविरोधी हो चला है। वह अपनी विरासतों/ नीतिगत मानदंडों का खुल्लमखुल्ला उलंघन करने पर उतारु है। अयोध्या में घटी हाल की घटनाओं पर रिपोर्टिंग से उसकी इसी नियत/ चरित्र का पता चलता है। इन खबरों में 23 जुलाई में मिर्ज़ापुर गांव की घटना, 21 सितंबर देवकाली मूर्ति चोरी प्रकरण, 13 अक्टूबर को मूर्ति बरामदगी आंदोलन में भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के कूदने और 24 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान हुए फसाद के आस-पास क्या क्या गुल नहीं खिलाए? भारतीय प्रेस परिषद की तरफ गठित कमीशन को तथ्य/ रिपोर्ट मुहैया करा देना इन अख़बारों को बहुत नागवार गुज़रा। जिसके बाद सांप्रदायिक खुन्नस निकालने का सिलसिला शुरू हुआ । फिल्म फेस्टिवल के आयोजक शाह आलम ने कहा -ताज़ा मामला काकोरी कांड के नायक अशफाकउल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के शहादत दिवस पर हुए तीन दिवसीय छठे अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के समापन के बाद ऐसी साजिश देखने को मिली। 21 दिसंबर को फिल्म उत्सव का समापन हुआ। 22 दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विधार्थी परिषद ने फिल्म फेस्टिवल के खिलाफ हमला बोल दिया। कुछ अख़बार भी भय, भ्रम और दहशत फ़ैलाने में इन कट्टरपंथी ताकतों का साथ देने लगे । एक प्रमुख अख़बार की खबर का शीर्षक था फिल्म फेस्टिवल में महापुरुषों का हुआ अपमान। अख़बारों ने इस ताः की कई खबर दी लेकिन इस मामले में फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन का बयान नहीं छापा, न ही लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की आवाज उठाने वालों की प्रतिक्रिया। 10 जनवरी को एक अख़बार ने फोटो के साथ तीन कॉलम की जिसका शीर्षक था -फिल्म फेस्टिवल के विरोध में छात्रों का प्रदर्शन लेकिन 10जनवरी को ही आनंद की प्रेस नोट जो इन अख़बारों को भेज गया वह नहीं छापा गया । 14 जनवरी को जस्टिस सच्चर, पूर्व आईजी एस आर दारापुरी, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर संदीप पांडे, लेखक डॉ प्रेम सिंह आदि की प्रतिक्रिया भी दबा दी गई। गौरतलब है कि अयोध्या/ फैजाबाद का माहौल पहले से ही संवेदनशील है। 22साल पुरानी फिल्म 'राम के नाम' जिसे सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट मिला है। भारत सरकार ने इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया है, इतना ही नहीं उच्च न्यायालय के आदेश पर इसे दूरदर्शन पर प्राइम टाइम में दिखाया जा चुका है। वैसे भी आनंद की फिल्मों को दुनिया की बेहतरीन फिल्मों में रखा जाता है।शाह आलम ने आगे कहा -एक अख़बार विद्यार्थी परिषद के हवाले से अपने पाठकों को बताता है 'राम के नाम' काल्पनिक फिल्म है, अयोध्या का नाम इस्लामपुरी है जिसे बाबर ने बसाया है, हिन्दू देवी - देवताओं, धर्मग्रंथों, हिन्दुओं का अपमान किया गया है। प्रभु राम का अस्तिस्त्व नहीं है, रामचरित मानस मनगढ़ंत है। भारतीय महापुरुषों पर अभद्र टिप्पणी की गई है। भारतीय संस्कृति के खिलाफ हमला किया गया है आदि आदि । इस दुष्प्रचार के खिलाफ लोगों को आगाह करना जरुरी है ।क्योकि मामला सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं रहेगा जब आग फैलेगी तो उसमे सभी जलेंगे ।

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