Saturday, December 15, 2018

द टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना !

आज के दौर में जब मीडिया घुटने टेक रहा हो तो टेलीग्राफ का तन कर खड़ा होना हमें सत्तर ,अस्सी और नब्बे के दशक में इंडियन एक्सप्रेस की याद दिलाता है .अस्सी के दशक के अंतिम दौर में इंडियन एक्सप्रेस समूह के अख़बार ' जनसत्ता ' से जुड़ना हुआ .वह दौर कांग्रेस का था .बहुत ही उठापटक का भी .बोफर्स का दौर देखा और सरकार पर एक्सप्रेस कैसे हमला करता है यह भी देखा ,देखा ही नहीं उसके हरावल दस्ते का हिस्सा भी रहा .और लोग अख़बार का क्या इन्तजार करते होंगे जब एक्सप्रेस समूह के चेयरमैन श्री राम नाथ गोयनका खुद अपने सुंदर नगर स्थित आवास पर सुबह चार बजे उठकर अपने तीनो अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ,जनसत्ता और फाइनेंशियल एक्सप्रेस का इन्तजार करते थे .कई बार हम लोग देर रात की पाली से जब निकलते तो एक्सप्रेस साथ ले जाते .अख़बार क्या होता है ,उसकी क्या ताकत होती है यह तब देखा .अंग्रेजी में अरुण शौरी तो हिंदी में प्रभाष जोशी के लिखे का इंतजार होता .तब कहा जाता था कांग्रेसी जनसत्ता अखबार बाथरूम में पढ़ते हैं क्योंकि पता चल गया तो पार्टी से बेदखल हो जाएंगे .हमले हुए जनसत्ता के पत्रकारों पर ,हड़ताल हुई और लंबी चली पर अख़बार डटा रहा .तिमारपुर में रहता था ज्यादातर सिख परिवार थे .सुबह देखता तो बालकनी में जनसत्ता पढ़ते नजर आते .ऐसी रिपोर्टिंग सिख दंगों की हुई .बिहार प्रेस बिल आया तो इंडिया गेट पर खुद रामनाथ गोयनका ,कुलदीप नैयर और खुशवंत सिंह जैसे दिग्गज हाथ में प्ले कार्ड उठाए नजर आये .अब वह दौर नहीं रहा .मीडिया का बड़ा हिस्सा सत्ता के खिलाफ लिखने बोलने से बच रहा है .वेब साइट जरुर कुछ मोर्चा लिए हैं .पर टेलीग्राफ का ऐसे तनकर खड़ा होना सुखद है .यह लोकतंत्र के लिए शुभ है .हर अख़बार दब नहीं सकता यह सन्देश भी है .

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