Friday, March 1, 2019

बदलते हुए इस पाकिस्तान को भी देखें

अंबरीश कुमार विंग कमांडर अभिनंदन जो पाकिस्तान का जहाज गिरा कर उधर ही गिर गए थे वे लौट आएं हैं . पकिस्तान कट्टरपंथियों का देश रहा है कोई लोकतांत्रिक देश नहीं जिससे दुश्मन देश के किसी सैनिक से सम्मानजनक बर्ताव की उम्मीद की जाए .वे क्या जिनेवा समझौता मानेगा जिसने अपने ही जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था .भुट्टो की बेटी बेनजीर को इसी देश में चुनाव प्रचार के दौरान बम से उड़ा दिया गया .सौरभ कालिया याद है न और अजय आहूजा भी .ऐसे देश से अपना एक बहादुर सैनिक सकुशल लौट आए तो यह ख़ुशी का मौका है ही .पर इसके पीछे कई और वजह भी है .पकिस्तान का नेतृत्त्व कुछ तो बदला रहा है .रोज मुठभेड़ होने के बावजूद भी .गौरतलब है कि विभाजन के बाद भारत ने धर्म निरपेक्ष रास्ता अपनाया तो पकिस्तान मजहबी कट्टरपंथ के रास्ते पर चला गया .जिसका असर उसके चौतरफा विकास पर पड़ा और अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती गई .पाकिस्तान की राजनीति कट्टरपंथियों और सेना के कब्जे में चली गई .कश्मीर के अलगाववाद को उसने हवा दी तो खुद भी आतंकवादियों का शिकार होता रहा है .लंबी सूची है पकिस्तान के उन महत्वपूर्ण लोगों की जिनकी जान आतंकवादियों ने ली .बेनजीर भुट्टो भी उन्ही का निशाना बनी थी .पर अब उसी पाकिस्तान की नई पीढी का रास्ता बदलता हुआ नजर आ रहा है . अभी तक हमारे जैसे ज्यादातर लोग पाकिस्तान को धर्मांध ,जाहिल और बर्बर मुल्क के रूप में ही देखते रहें हैं .हालांकि कुछ समय पहले एनडीटीवी की रिपोर्टर ने जब पाकिस्तानी छात्राओं से बातचीत की तो काफी हैरानी हुई थी .ये छात्राएं भारत आना चाहती थी ,लोगों से मिलना जुलना चाहती थी .भारत पकिस्तान के बीच नए सिरे से संबंध विकसित हो इस पक्ष में थी .बहुत ज्यादा इस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया था .पर दो दिन पहले लाहौर प्रेस क्लब पर पकिस्तान के नौजवानों के प्रदर्शन की जो फोटो देखी तो हैरान रह गया .इसमें छात्र छात्राएं भी थी तो बड़े भी .ये भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई की मांग कर रहीं थी .उस पकिस्तान में जो विश्व के सबसे ज्यादा आतंकी संगठनों से घिरा हुआ है .वह पाकिस्तान जो कट्टरपंथ के रास्ते पर है .हर रोज ये कट्टरपंथी लोगों को निशाना बनाते हैं . ऐसे में नौजवान लड़के लड़कियों का यह प्रदर्शन पकिस्तान की नई पीढ़ी में आ रहे बड़े बदलाव को दर्शा रहा है .इसके पीछे पाकिस्तान के मीडिया की भी भूमिका है .समूचा मीडिया तो नहीं पर बड़ा हिस्सा काफी समय से अपनी निष्पक्षता को बनाए हुए है .वह सरकार से सवाल भी पूछता है और अपनी राय भी मजबूती से रखता है .भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन की वीरता के किस्से पहले वहीँ सामने आए जबकि भारतीय मीडिया इस घटना को ही दबाने में जुटा था .मीडिया की खबरों के चलते ये नौजवान सड़कों पर उतरे और एक भारतीय सैनिक को छोड़ने की मांग की . वह भी उस माहौल में जब ज्यादर भारतीय चैनल उन्माद फैलाने में जुटे थे .बालाकोट में हवाई कार्यवाई को पर चैनलों ने तीन सौ से लेकर छह सौ आतंकवादी मारे जाने का दावा कर दिया .जबकि रायटर्स ,बीबीसी से लेकर अल जजीरा की रिपोर्ट इन दावों की हवा निकाल रही थी .रायटर्स ने तो सिर्फ एक कौव्वा मारे जाने की भी खबर दी .चूंकि सेना या विदेश मंत्रालय ने मारे गए आतंकवादियों की संख्या या नाम को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी इसलिए जो जिसके मन में आया वह संख्या देने लगा .हिंदी चैनल वैसे भी रिसर्च आदि की ज्यादा जहमत उठाते भी नहीं हैं .खैर ऐसे तनाव वाले माहौल में भारतीय मीडया युद्ध का उन्माद फैला रहा था तो प्रधानमंत्री देश को संबोधित करने की बजाए पार्टी का बूथ मजबूत करने के कार्यक्रम में जुटे थे .जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने देश की संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने का एलान किया .इसपर वहां की संसद में तालियां भी बजी .यह पहली बार हुआ .नौजवान तो सड़क पर उतरे एक भारतीय सैनिक के समर्थन में तो पकिस्तान की संसद ने उस सैनिक की रिहाई का स्वागत किया .यह बदलाव मामूली बदलाव नहीं है . यह उसी पकिस्तान में हुआ जहां जुल्फिकार अली भुट्टों हजार साल तक लड़ने की बात करते थे .जहां अलगाववादी नेता भारत को नेस्तनाबूद करने की कसम खाया करते थे .उस पकिस्तान में इमरान खान शांति की बात कर रहे हैं .विदेश मामलों के जानकार पत्रकार वेद प्रताप वैदिक इसे इमरान खान की बड़ी कुटनीतिक जीत के रूप में देखते है .विदेशी मीडिया भी इस बदले हुए तेवर की तारीफ़ कर रहा है .थोडा सा पीछे जाएं. इन्ही इमरान खान ने ही करतार साहिब का कारिडोर खोला था .यह कितनी पुरानी मांग थी सिखों की .पाकिस्तान में पहली बार कोई हिंदू महिला जज भी बनाई गई जो अघोषित इस्लामी देश है .ये वही पाकिस्तान है जिसमे सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिलवाया .भगत सिंह के नाम पर लोग सड़कों पर निकल आ रहें है .भगत सिंह के नाम पर चौक बनाने की मांग भी तो नौजवानों ने ही की थी . क्या यह सब बदलाव नए नहीं हैं .ये नई पीढ़ी अब इतिहास को पढ़ रही है और दोनों देशो का इतिहास देख भी रही है .वे तुलना भी तो करते होंगे .भारत कहां से कहां पहुंच गया .शिक्षा में ,स्वास्थ्य के क्षेत्र में ,तकनीक के क्षेत्र में .और पाकिस्तान को कट्टरपंथ की कितनी कीमत चुकानी पड़ी है .ऐसी बहुत सी वजह होगी इस बदलाव के पीछे .पर अगर हम इस बदलाव को अब नहीं देख पाए ,नहीं समझ पाए तो फिर टकराव कभी खत्म नहीं होगा .जिन्हें राजनीति में पिछड़ने की आशंका है वे अब युद्ध का अंतिम हथियार निकालना चाहते हैं .पाकिस्तान बदल रहा है ,कट्टरपंथ के रास्ते से आगे बढ़ना चाहता है और हम पीछे जाने का प्रयास कर रहे हैं .मीडिया का क्या वह तो कभी सरजू लाल कर अयोध्या सामने कर देगा तो कभी भाड़े की वर्दी पहन कर सैनिक बन जाएगा .इसलिए बदलते पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए .

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