Tuesday, December 11, 2018

क्या टूटने लगा है मोदी का तिलिस्म !

अंबरीश कुमार धान का कटोरा कहे जाने वाले छतीसगढ़ में भाजपा के चाउर वाले बाबा की सरकार जा चुकी है । छतीसगढ़ में भाजपा बुरी तरह हारी है । वोट काटने की रणनीति के चलते खड़े किए गए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी कोई मदद नहीं कर पाए । राजा महाराजों के अंचल राजस्थान में महारानी का राजपाट भी जा रहा है । सिर्फ मध्य प्रदेश में भाजपा के पिछड़े नेता शिवराज सिंह चौहान ही मुकाबला कर पाए हैं ।हालांकि सपा बसपा ने यह साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे ऐसे में कांटे के मुकाबले में मध्य प्रदेश में भी भाजपा का रास्ता बहुत आसान नहीं है । तीनो ही हिंदी भाषी राज्यों में शाम तक के रुझान के मुताबिक भाजपा को बड़ा झटका लगा है ।इसके साथ ही भाजपा के शीर्ष नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है । हिंदी पट्टी जिसे ' गाय पट्टी ' भी कहते है वहां के तीन राज्यों से भारतीय जनता पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले बुरी तरह हार गई है।हालांकि भाजपा कई बार चुनाव हारने के बाद भी जोड़ तोड़ से सरकार बना लेती है।राज्यपाल तो अभी अपनी भूमिका निभाएंगे ही । पर भाजपा और मोदी को बड़ा झटका लग चुका है यह वास्तविकता भी है । ये वही ' गाय पट्टी ' है जहां भाजपा गाय ,गोकशी और मंदिर का मुद्दा लगातार उठा रही थी । पर जमीनी मुद्दों ने भाजपा का खेल बिगाड़ दिया । इन तीनो राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल थी । कहीं नेतृत्व था तो कहीं बिखरा हुआ नेतृत्व था । कांग्रेस के लिए इन राज्यों में कुछ खोने को नहीं था । हालांकि कांग्रेस ने अगर अपना अहंकार छोड़ कर तीनो ही राज्यों में बसपा सपा के साथ गठजोड़ किया होता तो जीत और बड़ी होती । राहुल गांधी के लिए भी यह एक सबक है ।इसके बावजूद राहुल गांधी की राजनैतिक ताकत बढ़ी है । पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी मोदी को सीधी चुनौती देते रहे हैं । राहुल गांधी ने नोटबंदी ,राफेल से लेकर बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले उद्योगपतियों का सवाल ढंग से उठाया था । संजोग से आज ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल का पार्टी अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा हुआ है।साल भर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कैसा काम किया यह उसका नतीजा भी है।पिछले एक दशक में की राजनीति में काफी बदलाव आया है । अब वे अपनी तीखी राजनैतिक टिपण्णी की वजह से भी चर्चा में रहते हैं । जैसे कभी मोदी अपने भाषण की वजह से चर्चित हुए थे । पर अब तो मोदी के भाषण भी उनकी हताशा को दर्शा रहे हैं तो सरकार के कामकाज को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं । अब मोदी के भाषण में न तो राजनैतिक धार बची है न ही भाषा की मर्यादा ।' कांग्रेस की विधवा ' वाली टिपण्णी की देशभर में मोदी की निंदा हुई है । बहरहाल सरकार का कामकाज ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है । मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कामकाज का भी यह नतीजा है।यह चुनाव नतीजा कामकाज और भाषण के फर्क को भी दर्शाता है।आप बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं पर अगर सरकार ढंग से नहीं चला सकते हैं तो आम जनता को ज्यादा दिन भरमा नहीं सकते ।साफ़ है केंद्र और राज्य सरकार ने जो भी काम करने का दावा किया था वह जमीनी स्तर पर हवा में था । दूसरे उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में भाजपा जिस हिंदुत्व के मुद्दे को उभारने में जुटी थी उसका कोई बहुत ज्यादा असर इन राज्यों पर नहीं पड़ा । किसानो का सवाल ,नौजवानों का सवाल हो या दलित आदिवासियों का सवाल ज्यादा प्रभावी रहा । इन तीनो हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था । तरह तरह के घपले घोटाले तो थे ही साथ ही सरकार के कामकाज के तौर तरीकों से हर वर्ग नाराज हो रहा था । सबसे ज्यादा नाराजगी किसानो को की थी .नतीजा सामने है । दो राज्यों में तो काफी लंबे समय से ही भाजपा की सरकार थी.राजस्थान में पांच साल में ही भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ था । इन चुनाव नतीजों पर बात करने से पहले देश में पिछले एक वर्ष की घटनाओं पर नजर डालें।सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के चार जज सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस करते हैं।वे चीफ जस्टिस की मनमानी के खिलाफ सवाल उठाते हैं।मुद्दा मनचाही बेंच को मनचाहा मामला देने से शुरू हुआ।जानकारी के मुताबिक केस था लालू प्रसाद यादव वाला।विवादों में घिरे चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव भी लाती है।हाल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर हुए जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मीडिया कप बताया कि चीफ जस्टिस किसी बाहरी ताकत के इशारे पर काम कर रहे थे।यह आरोप आजाद भारत में पहले कभी नहीं लगा।लोकतंत्र का एक स्तंभ न्यायपालिका की साख किस तरह गिरी यह इस उदाहरण से साफ़ है।अब आइए सीबीआई पर।सीबीआई चीफ को सरकार ने तब छुट्टी पर भेजा जब उनके मातहत अफसर पर सीबीआई ने ही आपराधिक मामला दर्ज कर लिया।इस मामले के तार प्रधानमंत्री कार्यालय तक जुड़े हैं ऐसा आरोप लगा है।सोमवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया।उससे पहले सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुआ विवाद चर्चा का विषय बना रहा।यह बानगी है मोदी सरकार के कामकाज की।नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे मुद्दों को अलग रखे।डीजल पेट्रोल के लगातार बढती कीमतों को भी अलग रखे तो भी केंद्र सरकार के खिलाफ हिंदी पट्टी में एक आक्रोश तो उभरता हुआ दिख ही रहा था। जिन हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव हुए उन सभी राज्यों में अलग अलग मुद्दे प्रभावी हुए। छतीसगढ़ में भाजपा ने चुनाव से पहले ही बहुत जोड़तोड़ किया था पर मामला बना नहीं । अजीत जोगी वाला पैंतरा भी नहीं चला ।भाजपा तो जा ही रही है साथ ही जोगी को भी निपटाती जा रही है । पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण इन तीनो राज्यों के चुनाव के बाद की राजनीति हो गई है । अब लोकसभा का चुनाव सामने है । विपक्ष एकजुट होने लगा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न सिर्फ एकजुट विपक्ष की बड़ी चुनौती मिलेगी बल्कि पार्टी के भीतर भी चुनौती मिल सकती है । अब मोदी का चेहरा पार्टी को लोकसभा चुनाव में जीत दिला पाएगा या नहीं यह सवाल भी उठ सकता है । पार्टी ही नहीं संघ नेतृत्व में भी मंथन तो होगा ही । संघ अगर भाजपा के लौह पुरुष रहे आडवाणी को हाशिए पर डाल सकता है तो दूसरे को भी उसी रास्ते पर भेजने में वे क्यों हिचकेंगे । इसकी बड़ी वजह उत्तर प्रदेश और बिहार की मौजूदा बदलती राजनैतिक स्थितियां हैं ।बिहार में भाजपा लगातार कमजोर हो रही है ।उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का मुद्दा अब भाजपा के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है । दूसरे बसपा और सपा के बीच गठजोड़ होना तय है ,ऐसे में भाजपा को सबसे बड़ी चुनौती यूपी से ही मिलेगी ।प्रदेश से भाजपा में सबसे ज्यादा सीटें जीती है । इन तीनो राज्यों के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भी असर पड़ना तय है । हालांकि दिल्ली में विपक्ष की राजनीति से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जिस तरह दूरी बनाई हुई है वह समझ से बाहर है। जबकि अब क्षेत्रीय दल सीबीआई के खौफ से मुक्त होते जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होगा । आज दिल्ली के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित संशोधित टिपण्णी

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