Wednesday, September 26, 2018

काकपिट में मटका!

काकपिट में मटका! अंबरीश कुमार अस्सी के दशक में एयर इंडिया /इंडियन एयरलाइन्स की कई नियमित उड़ान के पायलट रहे .मुख्य रूट था कलकत्ता /भुवनेश्वर /विशाखापत्तनम और हैदराबाद .रत का पड़ाव हुआ हैदराबाद में रुके नहीं तो कोलकता वापस .टालीगंज में रहते थे .बीच बीच में दिल्ली /कोलकोता या कोलकोता सिंगापूर /ढाका आदि भी .दिल्ली से कई ऐसी भी उड़ान में पायलट रहे जिसमे मुख्य पायलट राजीव गांधी होते थे .कैप्टन श्रीवास्तव याद करते हुए बोले ,ऐसा व्यक्तिव मैंने बहुत कम देखा .इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी .कोलकोता से लौटे और हम होटल अशोका में चले गए तो राजीव गांधी एक सफदरजंग .उड़ान से पहले जब पायलट और को पायलट का परिचय दिया जाता तो राजीव गांधी का आग्रह होता कि उनके गांधी सरनेम का उल्लेख न किया जाए .सिर्फ कैप्टन राजीव कहा जाए .और यही कहा भी जाता .पायलट के प्रशिक्षण में हैदराबाद में वे भी अन्य पायलट के साथ रहते और किसी को यह अहसास नहीं होता कि ये प्रधानमंत्री के पुत्र हैं . खैर कैप्टन श्रीवास्तव अस्सी पार कर चुके हैं .दो ढाई साल पहले .पायलट की नौकरी से रिटायर हुए तो रामगढ़ में बस गए .गोंडा में उनके पिता जो मशहूर डाक्टर रहें हैं उनकी काफी बड़ी कोठी आज भी है .रहने वाले चार प्राणी और चौबीस कमरे .क्या देखें और कैसे देखें .अभी भी ज्यादा समय पहाड़ पर अकेले रहते हैं .खानपान में कोई बदलाव नहीं आया है .पांच किलोमीटर तो चलते ही हैं .पायलट रहे तो देश विदेश घूमना होता ही था .पर नियमित उड़ान पर भी जाते तो कुछ न कुछ जरुर लाते .चाहे पूर्वोत्तर का संतरा हो या भुवनेश्वर /विशाखापत्तनम का झींगा .भुवनेश्वर की उड़ान से लौटते तो चिलिका झील का मशहूर झींगा जरुर रहता .वह भी पानी भरे छोटे से घड़े में .बोइंग तो बाद में आया फोकर और एवरो भी खूब उड़ाया .बोले ,काकपिट में पीछे की तरफ अपने सामान के साथ यह घड़ा संभाल कर रखता और आराम से कलकत्ता आ जाता .पर समस्या कार से घर जाने पर होती .इसे हाथ में पकड़ना पड़ता .खैर वह भी दौर था .अब वे नैनीताल जाते हैं तो हैम /सलामी /सासेज ले आते हैं जो फ्रीजर में पड़ा रहता है . उम्र के चलते बगीचा देखना संभव नहीं होता .अच्छी प्रजाति के सेब और बबूगोशा होता है .घर के सामने खुबानी का पड़ा कलमी आम जैसा लगता है जिसके नीचे उनकी यह फोटो है .बगल में ही रस्तोगी जी का घर था ,अब बिक गया .रस्तोगी जी के बारे में कुछ दिन पहले लिखा था .दो साल पहले वे यहां से अपने पुत्र कर्नल अभय के पास चंडीगढ़ चले गए थे .जाते समय कैप्टन श्रीवास्तव से बोले ,मै यहां से जा तो रहा हूं पर अब मेरी उम्र आधी रह जाएगी .जड़ से काटने पर ऐसा ही तो होता है .यही वजह है कैप्टन श्रीवास्तव यह जगह नहीं छोड़ते ,भले अकेले रहना पड़े .

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