Wednesday, September 5, 2018

इंदर बहादुर चला गया

कल भवाली से जैसे ही लौटा कृष्णा जोशी के यहां अख़बार लेने के लिए आगे बढ़ा तो सामने बुजुर्ग डालाकोटी मिले .बोले ,आपका टाइगर गुजर गया अभी उसे दफना कर आ रहे हैं .झटका सा लगा .अभी कुछ दिन पहले ही तो बस स्टेशन पर पहुंचते वह आ गया और अंबर को देखकर उछलने लगा .सविता ने बिस्कुट का पैकेट लिया और उसे खिलाया .वापसी में वह दीपा कौल के काटेज तक आया .इसके आगे वह नहीं आता था .शायद डर या अपनी मां के गुजर जाने का दुःख हो .करीब पांच साल पहले ही उसकी मां जिसे हम घोटू कहते थे उसे बाघ का बच्चा उठा ले गया था .उसके बाद टाइगर बाजार चला गया और बहुत कोशिश के बावजूद नहीं लौटा .घर पर कोई था भी तो नहीं .इंदर बहादुर की बीबी पहले गई ,फिर दोनों बच्चे चले गए कमाने खाने .बहादुर जिसे सारा रामगढ़ इंदर बहादुर कहता था वह बीबी आशा के भाग जाने के बाद विक्षिप्त हो गया .अपने से बात करने लगा .रात में जोर जोर से चिल्लाता .फिर अशक्त होगया और उसके बच्चे एक दिन हल्द्वानी ले गए . फिर कुछ वर्षों तक कोई खबर नहीं मिली .आज राजेंद्र तिवारी के बनते हुए घर को देखने गया तो बात बात में ढेला जी ने बताया कि बहादुर तो काफी दिन पहले गुजर गया .सन्न रह गया .पच्चीस साल से पहले मिला था .सेवक भी तो चौकीदार भी .परिवार का सदस्य जैसा .आज अपना जो बगीचा है उसको गढ़ा बहादुर ने ही था .गर्मी हो या बरसात जुटा रहता .हाइड्रेंजिया के सारे पौधे उसी ने लगाए तो किवी का पौधा भी और देवदार भी .गाय पालने को बोला तो एक गाय खरीदवा दी .एक दिन बाघ ने गाय के बछड़े पर हमला किया और लेकर नीचे कूदा तो बहादुर फ़ौरन निकला और कूद गया .बछड़ा का आधा गला बाघ ने काट लिया था .पर इलाज चला और वह बछड़ा बच गया .पर बीबी जब उसे छोड़ के भाग गई तो यह झटका बर्दाश्त नहीं कर पाया .कुछ महीने तक तो बुरी तरह चिल्लाता हुआ घूमा .फिर कुछ सामन्य हुआ पर खुद से बोलना जारी रहा .आलोक तोमर आते तो उसे ऊपर के कमरे में बुलाते एक पौव्वा देते और उसकी बाते सुनते सब याद आया .नेपाल के जुमला जिले के दूर दराज के गांव का रहने वाला था .पिता ग्राम प्रधान थे .सेब के बगीचे और खेती भी थी .पर कमाने के लिए भवाली आया और फिर शिवाजी ठेकेदार के यहां मजदूरी करने लगा .अपने को करीब पच्चीस साल पहले दिसंबर में मिला .बर्फ पड़ी हुई थी और यह भीतर कमरे में तराई कर रहा था .बोला साब आप हमें चौकीदार रख लो .दूर से आना पड़ता है .उमागढ़ की पहाड़ी पर एक गोदाम में रहता था .अपने को अद्भुत किस्म का लगा और फिर वह अपने परिवार के सदस्य जैसा हो गया .शाम के बाद आसपास के नेपाली भी उसके झोपडी नुमा रसोई में जुटते .प्लम के पेड़ के नीचे एक बड़ी झोपडी में रसोई घर बनाया था .कई बार अपनी रोटी भी चूल्हे पर बना कर लाता .कई लोगों ने उसकी बनाई रोटी खाई है .यह सब किसी फिल्म की तरह सामने से गुजर रहा है . कुछ साल पहले धनंजय बाबा आये तो अपने ब्लॉग पर उसके बारे में कुछ ऐसे लिखा था - बहादुर.वैसे उसका नाम इन्दर है पर इन लोगों को हमारे देश में बहादुर कहा जाता है.ये यहां अम्बरीश जी का पुराना सहयोगी है. खासियत पता चली की ये हमेशा अपने से बात करता रहता है और बात होती है उसकी पत्नी और बिहार के बारे में,कारण उसकी पत्नी एक बिहारी श्रमिक के साथ पलायित हो चुकी है क्योंकि वह बहादुर से कम दारु पीता था.पता चला की इस प्यारे कसबे में ढेर सारे रसूख वालों की बड़ी बड़ी कोठियां हैं, जहाँ ऐसे ही बाहदुर ही रहते हैं.कुछ की पत्नियाँ भी साथ हैं और कुछ की भाग गयी हैं.इन बहादुरों के सहयोगी के रूप में मालिक की हैसियत के हिसाब से कुत्ते भी हैं.जो फलों पर टूटते बंदरों को शुरू में हड़काते हैं.पर पता चला की बन्दर बड़े कायदे से कुत्तों को पकड़ कर झपड़िया देते हैं,जिसके बाद कुत्ते भोंकना भी भूल जाते हैं.न तो रामगढ़ के कुत्ते आप को बोलेंगे और न बन्दर.बंदरों के सुख को देख कर लगा की अगले जनम मोहे रामगढ़ का वानर ही कीजो,चारों तरफ रसीले फलों के जंगल,अपने हिसाब से चुनने और खाने की आजादी.अँधेरा घिरता जारहा था और आकाश में तारे बस हाथ बढ़ा के छु लेने की दूरी पर लग रहे थे.जाहिर है सोने की इच्छा तो नहीं थी पर टैगोर टॉप जाने की इच्छा के साथ जून के महीने में कम्बल तान लेट गया.सुबह टैगोर टॉप.

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