Sunday, September 2, 2018

द्वारका में कृष्ण

अंबरीश कुमार पापा रेलवे में रहे तो दादी को चारो धाम की यात्रा कराई .बहुत छोटा था फिर भी कुछ धुंधली याद है .अपने को ट्रेन में चलना अच्छा लगता था .वे इंजीनियर थे तो उस समय परिवार के लिए फर्स्ट क्लास का एक पूरा डिब्बा मिलता था .बर्थ तो चार ही होती पर उसमे खाने के लिए टेबल और बाथरूम में नहाने के लिए शावर भी होता था .दादी ट्रेन में खाना नहीं खाती थी इसलिए जब कहीं ट्रेन रूकती कुछ समय के लिए तो वह काला बक्सा उतारा जाता जिसमे आटा ,दाल ,चावल और अन्य सामान होता .स्टोप अलग होता .अमूमन रिटायरिंग रूम में जाते और फिर खाना /नाश्ता बनता .कई जगह रिटायरिंग रूम नहीं मिलता तो प्लेटफार्म पर ही किसी जगह पर कैम्प लग जाता .तब छोटे छोटे स्टेशन पर इतनी भीड़ भी नहीं होती थी .एक बार कांचीपुरम गए तो शाम को स्टेशन मास्टर आया और बोला कि वह सब बंद कर जा रहा है क्योंकि रात में इस लूप लाइन पर कोई ट्रेन ही नहीं आती थी .इसी तरह द्वारका स्टेशन पर भी चाय आदि बनाई गई थी .कुछ साल पहले मै परिवार के साथ फिर द्वारका गया .द्वारका से सोमनाथ मंदिर होते हुए दीव का कार्यक्रम था .द्वारका में सुबह सुबह मंगला आरती में शामिल होकर निकलना था .इसलिए टैक्सी वाले को स्टेशन ही बुला लिया ताकि नहा कर सीधे मंदिर चले जाएं . द्वारका स्टेशन पहुंच तो भोर में ही गए पर पता चला कि रिटायरिंग रूम /वेटिंग रूम का कायाकल्प हो रहा है .वोटिंग रूम भी छोटा सा था .खैर एक घंटे में हम लोग तैयार हो गए .बिजली वाली केतली जो साथ लेकर चलता हूं उससे चाय बन गई और फिर द्वारका स्टेशन पर टहलने लगे .बहुत लंबा सा और साफ सुथरा प्लेटफार्म था .कल यहां पहाड़ में सविता ने जन्माष्टमी की पूजा की तो यह सब याद आया . गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है जहां मान्यता के हिसाब से 5000 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसाई थी और भगवान कृष्ण के राज्य की प्राचीन और पौराणिक राजधानी कहा जाता है।.जिस स्थान पर उनका निजी महल ‘हरि गृह’ था वहाँ आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। इसलिए कृष्ण भक्तों की दृष्टि में यह एक महान तीर्थ है.आठवीं शताब्दी के हिन्दू धर्मशास्त्रज्ञ और दार्शनिक आदि शंकराचार्य के बाद, मंदिर भारत में हिंदुओं द्वारा पवित्र माना गया ‘चार धाम’ तीर्थ का हिस्सा बन गया. अन्य तीनों में रामेश्वरम, बद्रीनाथ और पुरी शामिल हैं, यही नहीं द्वारका नगरी पवित्र सप्तपुरियों में से एक है. यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है जिसमें चारों ओर एक द्वार है. इनमें उत्तर दिशा में स्थित मोक्ष द्वार तथा दक्षिण में स्थित स्वर्ग द्वार प्रमुख हैं. सात मंज़िले मंदिर का शिखर 235 मीटर उंचा है. इसकी निर्माण शैली बड़ी आकर्षक है. शिखर पर क़रीब 84 फुट लम्बी बहुरंगी धर्मध्वजा फहराती रहती है. द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है.मंदिर में दर्शन कर निकले तो दक्षिण भारतीय और गुजराती नाश्ता हुआ .फिर समुंद्र के किनारे किनारे सोमनाथ की तरफ चले .इस बीच दिल्ली से केपी सिंह का फोन आया .बोले सोमनाथ कब तक पहुंचेंगे ?मैंने बताया सड़क बहुत ही ज्यादा खराब है इसलिए समय लग रहा है .वे चौंक कर बोले ,आप गुजरात की सड़क को खराब बता रहे हैं ,यह तो विकास का प्रतीक अंचल है . अब सड़क के गड्ढे तो खुद भर नहीं जाते जबतक कोई प्रयास न हो .बहरहाल यह हाल दीव की सीमा तक रहा .दीव की सड़कें हवाई पट्टी की तरह थी .

1 comment:

  1. सर फिर वट द्वारका से कृष्ण जी का क्या संबंध था और रोड वाली बात भी आपने ठीक लिखी है

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