Saturday, March 2, 2019

कभी इस गांव में भी रुके

अंबरीश कुमार का छोटा सा गांव है .कलंगूट से ढाई किलोमीटर और कैंडोलिम से नौ किलोमीटर दूर .हम कैंडोलिम से करीब ग्यारह बजे चले .धूप थी पर बहुत तेज नहीं .टैक्सी वाले सात आठ सौ रुपए मांग रहे थे .ज्यादा लगा इसलिए बस में बैठ गए .दस रुपए एक आदमी का भाड़ा था दो बैग थे इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं हुई .गोवा की बसों में दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह महिलाओं के लिए कई सीट आरक्षित रहती है .पर सभी को जगह मिल गई .थोड़ी देर का ही रास्ता था पर बस हर जगह रूकती हुई चल रही थी .नारियल के पेड़ों से घिरा रास्ता .दोनों तरफ छोटे पर खूबसूरत घर .कुछ देर में ही हम सालिगाव चौराहे पर उतर गए .यहां समस्या हो गई .ओवाईओ के जिस एपार्टमेंट में फ़्लैट बुक कराया था उसका कोई बोर्ड नहीं लगा था .जिसे ढूंढने में दिक्कत हुई और खीज भी .गुस्से में इसके करता धर्ता को डांट भी दिया .दरअसल यह रिसेप्शन विहीन व्यवस्था थी .यहां आपको कोई व्यक्ति नहीं मिलना था ,सारा इंतजाम खुद करना था .मोबाइल पर एक कोड भेजा गया .इस कोड से फ़्लैट पर लगा एक बड़ा ताला खुला और उसमे से मुख्य दरवाजे की चाभी निकली .दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुए . भीतर से फ़्लैट ठीक ठाक था .लिविंग रूम में सोफे टीवी के साथ डाइनिंग टेबल थी .दो बेडरूम थे एसी वाले .हर बेडरूम बालकनी के साथ था . सामने बड़ी बालकनी .बालकनी के ठीक सामने से नारियल के बाग़ में बना एक पुराना चर्च दिख रहा था .हम लोग हल्का नाश्ता करके चले थे ,इसलिए फिर कुछ खाने की इच्छा हुई .चार दिन से ऐसे ही एपार्टमेंट में थे इसलिए सारा सामान था .दरअसल कैंडोलिम में चारो ओर जो होटल रेस्तरां थे उसमे बीफ के व्यंजन भी थे .सविता ठहरी शुद्ध शाकाहारी .साफ़ मना कर दिया कि इन किसी भी होटल में नहीं खाएंगे खुद एपार्टमेंट के किचन में बनाया जायेगा .ठीक बगल में न्यूटन सुपर मार्किट थे .सब्जी भाजी फल से लेकर दाल चावल और फ्रोजेन रोटी तक ले ली गई .मछली भी थी ,अपनी इच्छा भी हुई पर कौन झमेला करता इसलिए मै भी शाकाहारी हो गया .वह सब सामान था ही .किचन में बिजली वाला चूल्हा और बर्तन के साथ आरओ भी चालू था .सब्जी फल और ब्रेड मक्खन को फ्रीज में रख दिया गया .गाजर ,मटर ,भुनी मूंगफली ,धनिया मिर्च और चिवड़ा था ही इसलिए सविता ने पोहा बनाया .अपने पास इंदौर की अच्छी नमकीन भी थी .धरा पांडे जब लखनऊ आई तो दे गई थी .वह रखा था .पोहा के साथ भुजिया /नमकीन और नींबू का प्रचलन है .नागपुर की तरफ तली हुई हरी मिर्च नमक और नींबू के साथ दी जाती है . दरअसल पोहा आदि का नाश्ता अपने पुरबिया परिवार में सविता के आने के बाद शुरू हुआ .वे बुन्देलखंड की है जिसपर मराठा खानपान का असर रहा .इसी वजह से पोहा अपने घर में भी ज्यादा बनने लगा .खैर इस एपार्टमेंट के किचन में भी बालकनी थी जो आम और नारियल के बगीचे में खुलती थी .वहीँ कुर्सी लेकर बैठ गया .आम में बौर आ चुके थे .कई जगह आम के टिकोरे दिखे भी .यह आबोहवा का असर था .कुछ देर बाद नीचे उतरे और आसपास निकले .कार्यक्रम बना कि वेगाटार समुद्र तट निकला जाए मापुसा होकर .पीछे ही सालिगाव का मशहूर चर्च था .यह पुराना चर्च है .Mãe de Deus Parish Church 1873 में बना था .इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं .पर सलिगाव इधर चर्चा में आया पानी बचाने को लेकर .भूजल का दोहन इधर काफी तेज हुआ है जिसे लेकर यहां के लोगों ने चिंता जताई .दरअसल बगल में गोवा का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल कलंगूट है .इधर से पानी उधर जाता है और उधर का कूड़ा कचरा इधर डंप किया जाता है .सभी सैरगाहों में कूड़ा कचरा डंप करने की बड़ी समस्या आ रही है .मोदी जी ने स्वच्छता अभियान जो चलाया उसका कुछ असर तो सरकारी स्तर पर हुआ है .यह हमें कैंडोलिम में भी दिखा .वहां सुबह छह बजे से लेकर शाम तक कूड़ा उठाने वाले ट्रक कई बार आते थे .पर ये कूड़ा लेकर जाते कहां थे मालूम नहीं .जारी

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