Sunday, August 24, 2014

सोनांचल में जहर में बदलता भू जल और नदियों का पानी

अंबरीश कुमार देश की उर्जा राजधानी कहा जाने वाला सोनांचल यानी सिंगरौली सोनभद्र के समूचे इलाके में नदी नालों और तालाब के साथ भू जल तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है ।इसकी मुख्य वजह अन्य उद्योगों के साथ कई वजह बिजली घरों का फ्लाई ऐश कचरा है ।यह कचरा पहले रिहंद नदी और बांध में डाला गया फिर गांवों से लेकर जंगल तक फेंका गया ।इसकी वजह से इस अंचल की तीन नदियां रिहंद ,कन्हर और सोन बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है ।इसे लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछली सोलह मई को दखल भी दिया था पर दो महीने बाद भी कोई ठोस पहल की उम्मीद नजर नहीं आ रही है ।गौरतलब है कि ज्यादातर बिजली घर सरकारी क्षेत्र के है । सिंगरौली और सोनभद्र में करीब तीस हजार मेगावाट बिजली उत्पादन होता है और कई नई परियोजनाएं भी शुरू होने वाली है ।यह सभी योजनाएं इस अंचल में कोयले की भरपूर उपलब्धता की वजह से है ।यह कोयला बाकि देश के लिए भले वरदान हो पर यहां के लोगों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है ।बिजली घरों के फ्लाई ऐश की वजह से से पहले रिहंद बांध का पानी प्रदूषित हुआ तो बाद में नदियां प्रदूषित हो गई ।13 जुलाई 1954 को रिहंद बांध का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने उम्मीद जताई थी कि बिजली परियोजना के शुरू होने के बाद जो विकास होगा उससे यह अंचल स्विट्जरलैंड जैसा बन जाएगा । रोचक यह है कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पडोसी जिला यानी सिंगरौली की बिजली परियोजनाओं को लेकर उसे सिंगापूर में बदल जाने की उम्मीद जताई थी ।पर ना तो यह सिंगापूर बन पाया और ना हो स्विट्जरलैंड ।बल्कि यह देश के बहुत ही पिछड़े इलाके में तब्दील हो चूका है । कई नदियों और बड़े ताल तालाब के बावजूद रेणुकूट के बाजार में आज भी शाम को आंध्र प्रदेश की मछली बिकती है आसपास के पचास कोस तक के दायरे में आने वाले नदी तालाब की मछली कोई नहीं खाता क्योंकि वाज जहरीली हो चुकी है ।बिजली घरों के फ्लाई ऐश के आलावा सीमेंट और रासायनिक उद्योगों का कचरा सीधे तालाब और नदी में डालने की वजह से यह हुआ है ।कुछ उद्योगों ने फ्लाई ऐश के लिए बड़े बड़े गड्ढे भी बनाए पर वे भी रिहंद बांध के तालाब के बहुत ही पास ।इससे फ्लाई ऐश बहकर तालाब तक पहुँच जाता है । इसे लेकर कई बार जब ज्यादा प्रदूषण बढ़ने की वजह से कुछ हादसे हुए और हंगामा हुआ तो कुछ बिजली घरों का कचरा सीधे जंगलों में फेंका जाने लगा ।दूर गांवों में काम करने वाला गांधीवादी वनवासी सेवा आश्रम इस इलाके 1954 से आदिवासियों के बीच सक्रीय है और उसकी प्रयोगशाला में भू जल की जाँच समय समय पर की जाती रही है ।इसमें केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के सहयोग से जो परीक्षण हुआ उसमे पता चला कि भू जल बुरी तरह प्रदूषित हो चूका है ।भूजल में फ्लोराइड के साथ पारा मानक से बहुत ज्यादा है ।वर्ष 2011 में सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लाक के रजनी टोला गाँव में भू जल में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा बढ़ गया कि कुछ ही समय में पेट की विभिन्न बिमारियों के चलते पंद्रह बच्चों की मौत हो गई थी ।वनवासी आश्रम की संयोजक और बुजुर्ग गाँधीवादी कार्यकर्त्ता रागिनी बहन के मुताबिक सोनभद्र जिले में भू जल स्तर विषैला हो चूका है और यह बड़े हादसे की वजह भी बन सकता है ।इस जिले के तीन ब्लाक के करीब दो दर्जन गांवों के भू जल में फ्लोराइड और पारा की मात्र मानक से काफी ज्यादा पाई गई है ।इसकी वजह से बड़ी संख्या में बच्चों को हड्डी और पेट से सम्बंधित बीमारिया हो रही है । कुछ गांवों मसलन परवा कुद्वारी ,करमडांड, मंबसा ,औरादंदी ,गोबरदाहा , समथरवा और कुस्मुहा में फ्लोराइड की मात्र दस एमजी प्रति लीटर से भी ज्यादा पाई गई ।किसी में यह मानक डेढ़ एमजी से दस गुना ज्यादा थी तो किसी में पंद्रह गुना ।इससे प्रदूषण खास कर फ्लोराइड होने वाली बीमारियों का अंदाजा लगाया जा सकता है ।इसके अलावा इस अंचल के कोयले में पारा की मात्र बहुत ज्यादा पाई जाती है जिसके चलते बिजली ग्फ्हरों में कोयले के इस्तेमाल के बाद यह कचरे के रूप में नदी तालाब के बाद भू जल में चला जाता है । आठ वर्ष से लेकर साठ साल के लोगों में बारह बच्ची ,महिलाओं और सात पुरुषों में 34.3 अंश प्रति बिलियन (पीपीबी ) पाई गई जबकि इसकी सुरक्षित सीमा 5.8 पीपीबी होती है ।यह एक बानगी है सोनभद्र और सिंगरौली में प्रदूषित होते भू जल की ।सिंगरौली में में कुछ जगहों पर भू जल इतना खारा हो चूका है कि चाय बनाने में कई बार दूध भी फट जाता है ।इससे साफ़ है कि समय रहते हुए हमें जरूरी कदम उठाने होंगे ।साभार -दैनिक हिन्दुस्तान

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