Monday, March 6, 2017

लुट जाओगे सरकार बनारस की गली में ...

अंबरीश कुमार छह मार्च यानी सोमवार की शाम चार बजे से ही वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर नेताओं की भीड़ लगने लगी थी .सब लौट रहे थे .उत्तर प्रदेश के चुनाव का प्रचार थम चुका है .थके हुए नेता ,कुछ अभिनेता और पत्रकार आदि भी .सवाल यही था इस चुनाव में हासिल क्या होगा . अपना साफ़ मानना है कि नतीजा चाहे जो हो इस चुनाव का हासिल राहुल और अखिलेश की राजनीतिक जोड़ी हैं .इस चुनाव में ये लालू और नीतीश की तरह एक जोड़ी के रूप में उभरे .प्रदेश के करीब आधा दर्जन बड़े शहरों में राहुल और अखिलेश ने साझा रैली की .मोदी पर अपने अंदाज में निशाना साधा और अंततः मोदी इस जोड़ी के जाल में फंस ही गए .जिसके चलते मोदी इस चुनाव में अपनी विशिष्ट शैली से बाहर चले गए .जिसके चलते कभी गधा चुनाव के एजंडा में आया तो कभी अनानास को नारियल समझने और समझाने की गल्ती वे कर बैठे .वे मेट्रो का टिकट किस खिड़की पर मिलेगा यह पूछने लगे जब लखनऊ में मेट्रो का ट्रायल रन शुरू हो चुका था .यह कुछ ज्यादा ही लग रहा था .ठीक है वे गुजरात में मेट्रो न शुरू कर पाए पर देश के किसी भी हिस्से में अगर मेट्रो की शुरुआत हो रही हो तो प्रधानमंत्री को उसकी खिल्ली उडाना शोभा नहीं देता .यह बात आम लोग कर रहे हैं .बैंक गया था तो प्रभात कुमार से बनारस पर बात हुई कोई सज्जन जो पैसा निकलवाने आए थे बीच में कूद पड़े ,बोले -प्रधानमंत्री को तीन दिन तक बनारस में डेरा डालना और भाषा का स्तर गिराना शोभा नहीं देता .यह एक मध्य वर्गीय पढ़े लिखे जमात की आम राय है .उनकी नहीं जो अगड़ी जातियों के दिमागी ताले में बंद हो .प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने चुनावी भाषण में कर्बला और कब्रिस्तान का हवाला देकर अपने विकास के एजंडा का मजाक बना दिया .रही सही कसर बनारस की गली गली छानकर पूरी कर दी . दूसरी तरह अखिलेश यादव ने चुनाव के शुरू से लेकर अंत तक अपने चुटीले अंदाज को नहीं छोड़ा ,मुस्कुराना नहीं छोड़ा .तब भी नहीं छोड़ा था जब मुलायम सिंह ,अमर सिंह और शिवपाल उनके खिलाफ विद्रोह में जुटे थे .तब भी लोग कहते थे मुलायम के बिना अखिलेश कुछ नहीं है .पर देश के सबसे बड़े सूबे का चुनाव समाजवादी पार्टी ने सिर्फ अखिलेश यादव के कंधे पर रख कर लड़ा .तीन चरण बाद डिंपल यादव निकली और वे भी लोकप्रिय हुई अपने अंदाज से .अब सीटें चाहे जितनी आएं समाजवादी पार्टी को नया नेता मिल चुका है जो दो दशक से ज्यादा की पारी खेलने की तैयारी में है .ख़ास बात यह है कि अखिलेश का रुख लचीला है ,जोड़तोड़ वाला दिमाग नहीं है .इसी वजह से कांग्रेस से तालमेल भी हुआ . यह ठीक है कि अभी उनका राजनैतिक अनुभव मुलायम जैसा नहीं है न ही उनके साथ जनेश्वर मिश्र ,बृजभूषण तिवारी ,कपिल देव सिंह .मोहन सिंह जिजसे खांटी समाजवादियों की कोई टीम है .उनके टीम में नए लोग है .पर वे लोग है जिन्होंने संघर्ष के दौर में छोड़ा नहीं था और पुलिस की बर्बरता के शिकार भी हुए .बहुत से फैसले अखिलेश ने दबाव में लिए और खुद भी कई गलत फैसले किए .पर यह राजनैतिक प्रक्रिया में हमेशा से होता आया है .कई को दबाव में साथ लिया तो कई को अपनी नासमझी में भी .ये ही गायत्री प्रजापति हैं जिनके चक्कर में पिता और चाचा दोनों से झगड़ा हुआ और अंततः टिकट भी देना पड़ा .तब जितने लोग मुलायम के पक्ष में खड़े थे सब गायत्री को भी पवित्र बनाए हुए थे .गायत्री पर खनन के भारी खेल का आरोप है ठीक उसी तरह जैसे बाबू सिंह कुशवाहा पर था .बाकी दो साल उनके साथ रहने वाली महिला के मामले में राज्यपाल राम नाइक ने जितनी दिलचस्पी दिखाई वह भी समझ में आ रही थी .रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी के मामले में अपनी केंद्रीय मंत्री को कैसे बचाया जाता है ,यह सब इनसे सीखना चाहिए .खैर ऐसे तत्वों से अखिलेश को दूर रहना चाहिए और इसका संकेत वे दे चुके है .उन्होंने जिनको जिनको पार्टी से बाहर किया सब को भाजपा और बसपा ने शरण दी .माफिया सरगना की दूसरी पीढ़ी को भाजपा ने भी खाद पानी दिया है तो बसपा तो उन्हें मजलूमों का मसीहा ही मानती है .सपा में अभी भी दागी है पर बाकी दलों के मुकाबले कम ,जिन्हें बाहर करना बेहतर है . पर असली मुद्दा राजनैतिक है .अखिलेश यादव ने अपने दम पर यह चुनाव लड़ा उस पार्टी का जिसपर मुलायम सिंह जैसे कद्दावर नेता का साया दो महीने पहले तक रहा .साथ ही राहुल गांधी से उनकी राजनैतिक केमेस्ट्री बनती नजर आई .कांग्रेस प्रदेश में बहुत ही बुरी स्थिति में रही है .ऐसे में अगर इस गठबंधन को वोट का फायदा होता है तो यह जोड़ी लोकसभा चुनाव तक आराम से चलेगी .दूसरे यह लोकसभा चुनाव को लेकर देश में एक व्यापक गठबंधन की दिशा में भी पहल कर सकती है .समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में नीतीश कुमार को जोड़ने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की .अगर ऐसा करते तो उसका राजनैतिक संदेश दूर तक जाता .फिर भी अखिलेश और राहुल गांधी ने समूची भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को जिस तरह बचाव की मुद्रा में लाने पर मजबूर किया वह ऐतिहासिक है .वे बनारस की गलियों में जिस तरह निकले और जैसी सफाई थी वह भी लोग याद रखेंगे .रोड शो को नादान कलेक्टर ने बताया कि वे दर्शन करने जा रहे थे .क्या कोई व्यक्ति दो क्विंटल फूल रास्ते भर उछालता हुआ बाबा विश्वनाथ के दर्शन करे जाता है काशी में .पर उससे भी क्या होगा .नजीर बनारसी ने जो लिखा है उसपर भी एक नजर डाल लें तो सब समझ में आ जाएगा . ऎसा भी है बाजार बनारस की गली में ,बिक जाए खरीदार बनारस की गली में ,सड़कों पे दिखाओगे अगर अपनी रईसी,लुट जाओगे सरकार बनारस की गली में .

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