Sunday, January 1, 2017

चूहे के हाथ तो चिंदी है !

चू अंबरीश कुमार नोटबंदी के पचास दिन बीत गए .प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पचास दिन ही तो मांगे थे .उसके बाद के तीन दिन भी बीत गए .अब नया साल भी शुरू हो गया है .पर बीते साल की नोटबंदी ने कई घरों में अंधेरा छाया हुआ है .बीते साल के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले .पर ऐसा कुछ नहीं बोले जिसकी देश के लोगों को उम्मीद थी .इससे पहले भी बोले थे तो चूहे की बात कही .वे अपने अंदाज में बोले ,' एक नेता कहते हैं कि मोदी ने खोदा पहाड़ और निकली चुहिया. मैं बता दूं कि मैं चुहिया ही चाहता था. क्योंकि वो ही सभी कुतर-कुतर के खा जाती है.' प्रधानमंत्री ने ही कहा कि वे सिर्फ चुहिया ही निकालना चाहते थे .इससे ज्यादा कुछ नहीं .शेर का पिंजड़ा लगाकर उन्होंने जिस चुहिया को पकड़ा उसके हाथ तो सिर्फ चिंदी लगी है .क्या आपने सुना किसी बड़े कारपोरेट घराने का कोई बड़ा काला धन पकड़ा गया .क्या कोई बड़ा नेता काला धन के साथ पकड़ा गया ,क्या कोई बड़ा आतंकवादी काला धन के साथ पकड़ा गया .ये तो काला धन के जंगल के शेर चीते है .पर मोदी ने चुहिया पकड़ी है .क्या देश इसी ' चुहिया ' को पकड़ना चाहता था .क्या इसी चुहिया को पकड़ने के लिए करीब सवा सौ लोग घोषित रूप से कतार में शहीद हो गए .अघोषित यानी नकदी के आभाव में गंभीर रूप से बीमार लोग जो मर गए वे अलग हैं .जिन घरों में शादियां टूट गई वे परिवार अलग है .छोटे मझोले उद्योगों के जो मजदूर शहर से गांव लौट आए वे अलग है .जो किसान रबी की फसल समय पर कर्ज के बावजूद नहीं बो पाए वे अलग है .कर्ज भी तो पुरानी करेंसी में था .पर इस सब पर प्रधानमंत्री खामोश रहे .वे आगे बोले , 'यही देश, यही लोग, यही कानून, यही सरकार और यही फाइलें थीं. वो भी वक्त था कि जब सिर्फ जाने की चर्चा होती थी. ये भी एक वक्त है कि अब आने की चर्चा होती है. देश के लिए जज्बा, लोगों के प्रति समर्पण हो तो कुछ करने के लिए ईश्वर भी ताकत देता है.पर मोदी जी माल्या को क्यों भूल जाते हैं .मध्य प्रदेश के व्यापम को क्यों भूल जाते हैं .छतीसगढ़ के अनाज घोटाले को क्यों भूल जाते है .आपके राज में भी बहुत माल जा रहा है . वे कल बोले पर बहुत सपाट सा बजट भाषण जैसा .चेहरे पर थकावट का भाव .यह उम्मीद तो किसी को नहीं थी .सभी मान कर चल रहे थे कि प्रधानमंत्री बताएंगे कि देश को कितना काला धन मिला .कितने उद्योगपति पकडे गए ,कितने नेता धरे गए .पर उन्होंने इसपर कुछ नहीं कहा क्योंकि नोटबंदी से इनपर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पडा .पकडे गए तो चंद मिठाई वाले ,दवाई वाले या कुछ बैंक मैनेजर .क्या इन्ही के लिए देश को आर्थिक आपातकाल का सामना करना पड़ा .कृषि के जानकार देवेंद्र शर्मा ने बताया है कि इस नोटबंदी से किस तरह छोटे और मझोले किसान तबाह हो गए .तराई के इलाके में दलहन की फसल पर बुरा असर पड़ चुका है .पर इनके अर्थशास्त्री भी गजब के हैं जो बता रहें हैं कि इस नोटबंदी में किसानो ने झूम कर बुआई कर डाली है .बंपर फसल होगी .जब सबकुछ कागज पर ,भाषण में ही करना है तो कोई भी सब्जबाग दिखा सकते है .ये गंजों के शहर में कंघे का कारोबार कर सकते है .यूपी का चुनाव होने जा रहा है .वे कल भी बोलेंगे .पर देखिएगा अबकी कितना गजब का बोलेंगे .हाथ हिलाकर ,चेहरा बनाकर .वाराणसी याद है न किस तरह राहुल गांधी के कथित घूस के आरोप पर नाटकीय अंदाज में तालियां बटोर ली थी .पर याद रहे सारे नाटकीय अंदाज के बावजूद न ये दिल्ली बचा पाए न बिहार .अब यूपी की बारी है .यूपी की नजर भी उसी ' चूहे ' पर है जिसकी तलाश में इन्होने किसानो का खेत खलिहान खोद डाला .उद्योग धंधे की नीव खोद डाली .पर उस चूहे के हाथ तो चिंदी है .बड़े लोग तो निकल चुके हैं .

No comments:

Post a Comment