Tuesday, February 9, 2016

नदी को नहर में तो न बदलें

नदी को नहर में तो न बदलें अंबरीश कुमार देश के विभिन्न हिस्सों में शहरों से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट बनाने की योजना शुरू हो चुकी है । देश में इस योजना की प्रेरणा अहमदाबाद के बीच से बहने वाली साबरमती रिवर फ्रंट से मिली तो विदेश में न्यूयार्क की हडसन नदी से । इसका लोग उदाहरण भी देते है । इसी के चलते पर शुरू होना है । इसका कल्पना भी बहुत अच्छी लगती है और जो सब बताया जाता है वह भी मध्य वर्ग को बहुत लुभाता है । मंद मंद बहती नदी के दोनों तट पर पक्की चमचमाती सड़क । बैठने के लिए शानदार बेंच । संगीत के साथ तरह तरह के व्यंजन परोसते रेस्तरां और नदी में वाटर स्पोर्ट । अत्याधुनिक नाव ,होवरक्राफ्ट और क्रूज सबकुछ । बस नहीं होगा तो नदी का अपना साफ़ पानी । पर इसकी कीमत बहुत ज्यादा है । जिस नदी पर यह बनेगा उसका हाइड्रोलिक सिस्टम पूरी तरह बिगड़ जाएगा । जो जलचर नदी के कच्चे किनारे पर आते जाते अंडा देते वे सब निपट जाएंगे । नदी अपने को रिचार्ज करने के लिए जो पानी अपने कच्चे किनारों से बरसात में लेती वह व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी । साफ पानी तो तो कम मिलेगा सीवेज का पानी ज्यादा मिलेगा । इस योजना से शहर का कुछ सौंदर्य भले बढ़ जाए ,कुछ होटल और क्रूज वालों को मुनाफा भले हो जाए पर पर्यावरण को जो नुकसान होगा उसकी भरपाई सौ साल में भी संभव नहीं होगी । और जो सरकार इस तरह की योजना पर काम कर रही है उन्हें इनके राजनैतिक नुकसान का आकलन जातीय समीकरण से ऊपर उठकर कर लेना चाहिए । इससे पानी का बड़ा संकट भी पैदा होगा । अब लोग पानी के संकट को गंभीरता से लेते है और उसकी वजह भी जानना चाहते है । जिस साबरमती रिवर फ्रंट से लोग प्रेरणा ले रहे है उन्हें यह जानना चाहिए कि इस योजना के चलते साबरमती में बार बार नर्मदा का उधार का पानी डाला जाता है तब वह बची हुई है वर्ना वह भी कई महीने नदी की जगह नाला नजर आएगी । और इसकी कितनी कीमत साबरमती ने चुकाई है वह भी जान ले । शहर के बीच साबरमती की औसत चौड़ाई 1253 फुट थी जो रिवर फ्रंट योजना के बाद 902 फुट बची । यह जो कटौती हुई है उसी पर रिवर फ्रंट बना और इसका एक हिस्सा निजी क्षेत्र के हवाले भी हुआ । इस तरह नदी का एक हिस्सा किस तरह विकास की भेंट चढ़ गया यह सोचने वाला है । अब गोमती हो हिंडन हो या फिर यमुना हो जिस भी नदी पर रिवर फ्रंट बनेगा वह नदी को छोटा कर ही बनेगा । नदी और नहर में जो फर्क होता है उसे तो समझना चाहिए । नदी पानी देती है और खुद ही पानी लेती भी है । कहीं भूजल से अपने को रिचार्ज करती है तो कहीं बरसात के पानी से । जबकि नहर अपने को स्वतः रिचार्ज नहीं कर सकती । दूसरे हर नदी की प्रकृति अलग होती है । गोमती का मुकाबला चम्बल से नहीं हो सकता और न ही टेम्स और हडसन से । टेम्स और हडसन को किस तरह पुनर्जीवित किया गया है यह लोग नहीं जानते । फिर अगर शहर से बहने वाली नदी पर रिवर फ्रंट प्राकृतिक रूप से भी बनाया जा सकता है । चीन के शंघाई में ह्वांगपू रिवर फ्रंट /पार्क इसका नया उदाहरण है जहां नदी के किनारे बिना सरिया सीमेंट की दीवार बनाए प्राकृतिक ढंग से रिवर फ्रंट बनाया गया ।ऐसी व्यवस्था की गई जिससे नदी का पानी साफ़ रहे और उसके पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे । अपने देश में ज्यदातर नदियां जो शहर से गुजरती है वे बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है ।अब उनके दोनों किनारे सड़क माल और बाजार बनाकर हम उसे पूरी तरह ख़त्म कर देंगे ।साभार -दैनिक हिंदुस्तान फोटो -शंघाई ह्यूटन पार्क का दो दृश्य .ऐसा भी रिवर फ्रंट हो सकता है

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