Thursday, May 8, 2014

उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत की तरफ बढती भाजपा !

उत्तर प्रदेश में टूट रहा है जाति का तिलिस्म ! अंबरीश कुमार लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई का आखिरी चरण में पहुँचते पहुँचते जातीय गोलबंदी से बाहर जाती दिख रही है । यह भाजपा के लिए बड़ी जीत का संकेत भी है । एक राजनैतिक टीकाकार इसे ऐसी ' सेकुलर लहर ' बता रहे है जिसमे न तो राम है और न मंदिर निर्माण का मुद्दा न ,मस्जिद का ध्वंस है ,न इसमें कोई उन्माद है । यह चुनाव समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के जातीय समीकरण को तोड़ रहा है ।कितना टूटेगा इसका आकलन फिलहाल मुश्किल है । यह पहली बार है जब भाजपा के किसी उम्मीदवार के नाम पर वोट नही मिल रहा है बल्कि मोदी की अभूतपूर्व राजनैतिक मार्केर्टिंग के नाम पर वोट दिया जा रहा है ।पर यह वोट अप्रत्यक्ष रूप से मजहबी गोलबंदी के नाम पड़ रहा है ।यह चिंता का भी विषय है और प्रदेश में आने वाले दिनों में नए टकराव की आहट भी ।भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में जो माहौल बनाया है उसका फायदा भाजपा को मिल रहा है । इस खेल में धर्म से लेकर जाति और ' नीच ' जाति सबका इस्तेमाल हुआ है ।जाति का इस्तेमाल मोदी ने अंतिम दौर में किया ।जाति समीकरण टूटे तो फैजाबाद में भाजपा के लल्लु सिंह को ब्राह्मण से लेकर यादव तक का वोट मिला ।लल्लू सिंह जो तीसरे नंबर पर चल रहे थे अब सबको चुनौती दे रहे है ।मोदी के चलते ही लखनऊ में राजनाथ सिंह को ब्राह्मण से लेकर पिछड़ों तक का वोट मिला । यह ' अबकी बार मोदी सरकार ' के नारे का कमाल है । गैर भाजपा दल मोदी को रोकने में नाकाम नजर आ रहे है ।यह हुआ है परम्परागत जाति समीकरण टूटने की वजह से ।आगे पढ़े बीते मंगलवार को मायावती जब अचानक प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस और भाजपा के टकराव में दखल दिया तब लोगों को ध्यान आया कि यह मुद्दा कितना गंभीर हो चूका है । मोदी ने पिछड़ों के साथ दलित वोटों पर फोकस किया है । प्रियंका गाँधी की नीच राजनीति वाली टिपण्णी को समाज के एक ख़ास तबके से जोड़कर उन्होंने मायावती को भी चुनौती दी थी । इसी वजह से मायावती ने फ़ौरन प्रेस कांफ्रेंस कर सवाल उठाया कि पिछड़ी जाति का सहारा लेने वाले मोदी किस जाति के है यह कभी नहीं बताते ।मायावती ने कहा , ' वे क्या है बताना चाहिए कि वह नाई हैं, कुशवाहा हैं या पाल हैं। ' रोचक यह है यह विवाद प्रियंका गाँधी और मोदी के बीच था पर मायावती ने बेहद आक्रामक ढंग से दखल दिया । दरअसल लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिम से जो खबरे मिली उसके मुताबिक मजहबी गोलबंदी के चलते अति पिछड़ों और दलितों का भी एक हिस्सा भाजपा की तरफ गया ।करीब एक दशक से ज्यादा समय की राजनीति में यह पहली बार हुआ कि बसपा के वोट बैंक में किसी दल ने सेंध लगाने की कोशिश की और कुछ हद तक यह कोशिश कामयाब भी मानी जा रही है ।दूसरी तरफ मुस्लिम वोटों का भी बंटवारा हुआ है ।मुजफ्फरनगर कांड की वजह से मुस्लिम समाजवादी पार्टी से नाराज था और इसका फायदा बसपा को मिलना तय था । पर मुस्लिम बिरादरी ने भी वही पर बसपा को वोट दिया जहाँ बसपा मुकाबले में रही ।जिस भी सीट पर सपा का उम्मीदवार आगे दिखा उसे नाराजगी के बाद भी मुसलमानों ने वोट दिया । इसी तरह कांग्रेस जिस भी सीट पर मजबूत दिखी उसे भी मुस्लिम वोट मिला इसका बड़ा उदाहरण लखनऊ में रीता बहुगुणा जोशी को बताया जा रहा है हालाँकि वे राजनाथ सिंह से साथ कड़े मुकाबले में रही है । पर पहले दुसरे चरण के बाद उत्तर प्रदेश के मध्य हिस्से तक चुनाव आते आते कुछ बदला और मुलायम सिंह ने अपने गढ़ में भाजपा की हवा को ना सिर्फ रोकने की मजबूत कोशिश की बल्कि पूर्वांचल के आजमगढ़ से खुद खड़े होकर मोदी के लिए चुनौती भी खड़ी कर दी है । पर जिस तरह जाति समीकरण टूट रहा है वह बसपा के साथ सपा के लिए भी बड़ी चुनौती बन गया है ।राजनैतिक टीकाकार और वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा -यह ऐसी लहर है जिसमे न तो राम है और न मंदिर निर्माण का मुद्दा न मस्जिद का ध्वंस है इसमें कोई उन्माद है ।उतर प्रदेश में पिछले दो सालों में दो सौ से ज्यादा मजहबी फसाद और तनाव की घटनाएं हुई और सरकार इसमें एक पक्ष किए साथ खड़ी आई ।इसके अलावा कांग्रेस के प्रति लोगों की नाराजगी ने लोगों को भाजपा की तरफ मोड़ दिया ।यह पहला चुनाव है जिसमे जाति का कवच टूट रहा है ।आजमगढ़ तक में यादव मतदाता बड़ी संख्या में भाजपा की तरफ जा रहा है ।इससे चुनाव की तस्वीर साफ़ है ।भाजपा अबतक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने जा रही है ।' मुलायम सिंह ने आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का फैसला इसलिए किया क्योंकि पूर्वांचल में पिछड़े खासकर यादव मुसलमानों का समीकरण मजबूत रहा है ।पर जाति समीकरण टूटने से अगर ज्यादा नुकसान बसपा का हुआ तो सपा भी बच नही पाई है । इसी जाति समीकरण को लेकर दुसरे चरण के मतदान के बाद बसपा और सपा की टकराहट शुरू हुई थी ।दुसरे चरण के साथ ही मायावती और मुलायम में जमकर टकराव हुआ ।गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में सुरक्षित सीटों पर सपा भारी पड़ी थी और विधान सभा चुनाव में भी दलितों का एक बड़ा हिस्सा सपा की तरफ गया था । विधान सभा चुनाव में सपा ने 84 दलित उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमे 57 जीते थे ।इनमे बीस जाटव उम्मीदवार थे जिसमे तेरह जीते तो पासी उम्मीदवारों की संख्या तेईस थी जिसमे बीस जीते ।यह आंकड़ा दलितों के रुझान में बदलाव का साफ़ संकेत दे रहा था ।दलितों में पासी बिरादरी ज्यादा नाराज थी क्योंकि उन्हें बसपा सरकार में उतनी प्राथमिकता नही दी गई जितनी जाटव को दी गई ।इसी वजह से वे सपा की तरफ गए क्योंकि सपा आगे थी ।अब अगर भाजपा आगे है तो वे भाजपा की तरफ भी जा सकते है ।यही मायावती की चिंता भी है । दरअसल यह एक दुसरे के वोट छीनने की रणनीति का हिस्सा था ।पूर्वांचल की कई सीटों पर बसपा बहुत मजबूती से लड़ रही थी पर मोदी ने अपने को पिछड़ा बताने के साथ 'नीच राजनीति ' को जिस तरह नीच जाति की राजनीति में बदला उससे मायावती का पूर्वांचल का राजनैतिक समीकरण गड़बड़ा सकता है ।अगर दलित वोटों में बंटवारा हुआ तो बसपा की आधा दर्जन से ज्यादा सीटें खतरे में पड़ जाएँगी जिसमे देवरिया की भी सीट शामिल है जहाँ भाजपा के कलराज मिश्र को बसपा से कड़ी चुनौती मिल रही है ।अगर मोदी जातीय गोलबंदी में सफल हुए तो बसपा का ज्यादा नुकसान होगा और सीधी लड़ाई भाजपा और सपा के बीच हो जाएगी ।ऐसे में इन्ही दोनों दलों को पूर्वांचल में ज्यादा फायदा होगा ।पर मुस्लिम वोट बिखरे तो सपा को भी नुकसान होगा जिसकी आशंका जताई जा रही है । पिछले विधान सभा चुनावों में दलित वोटों में बंटवारा हुआ था और गैर जाटव वोटों का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी की तरफ भी गया था ।पिछले कई महीनो से समाजवादी पार्टी अति पिछड़ों की राजनीति पर काफी फोकस भी किए हुए थी ।पर मोदी ने जो पिछड़ा कार्ड खेला उससे इन दोनों को नुकसान होता नजर आ रहा है ।ऐसे में एक तरफ अति पिछड़ी जातियों की राजनीति में बसपा कुछ कमजोर पड़ी है और मोदी ने इसके एक हिस्से में बहुत ख़ामोशी से सेंध भी लगा दी है ।भाजपा को इसबार पिछड़ों और अति पिछड़ों का अच्छा खासा वोट जा रहा है ।इसलिए मायावती की चिंता स्वभाविक है और मुलायम सिंह को भी कई सीटों पर झटका लग सकता है ।पूर्वांचल में अगर मुस्लिम बंटा और अति पिछड़े और दलित वोटों में सेंध लगी तो सपा बसपा दोनों का नुकसान होगा और भाजपा को इसका फायदा मिलेगा जो बड़ी जातियों के बड़े हिस्से को जोड़ चुकी है ।

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