Thursday, December 3, 2015

रियो टिंटो पर मेहरबान है शिवराज सिंह सरकार

धीरज चतुर्वेदी छतरपुर . उच्च न्यायालय ने छतरपुर जिले के बकस्वाहा में हीरा कंपनी रियोटिंटो के पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है. पहल संस्था की याचिका पर उच्च न्यायालय ने इसे पर्यावरण और जीव जंतुओं के लिए नुकसानदायक बताया. हीरा कंपनी रियोटिंटो को मई 2006 में बकस्वाहा के जंगलों को काटकर हीरा ढूंढने का लाइसेंस दिया था. ये जंगल करीब 2329 हेक्टेंयर में फैला हुआ है. बुंदेलखंड से जुड़ा ये पूरा इलाका सूखे की मार झेलता रहता है. पर यहां जंगलों की कोख में बेशकीमती हीरे के मिलने के आसार हैं. ऐसे में गरीबी की मार झेल रहे इस क्षेत्र पर सरकार की नजर यहां के बेशकीमती हीरे पर गड़ गयी है. इसलिए इस जंगल को उजाड़ने की भी तैयारी हो रही है. मध्य प्रदेश में आने वाले बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर के लोगों को विकास का सपना दिखाकर अब तबाह करने का खाका तैयार कर चुकी है. इसका जिम्मा सरकार ने रियोटिंटो कंपनी को दिया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कंपनी के प्रोसेसिंग प्लांट का उद्घाटन भी कर गये हैं. कंपनी के साथ मुख्यमंत्री भी बुंदेलखंड के अति पिछडे़ छतरपुर जिले के बक्सवाहा इलाके में विकास की गंगा बहा देने का सपना भी दिखा गये हैं. लेकि‍न उस तबाही की अनदेखी हो रही है. जो दशकों तक गरीबी, भुखमरी और बंजर के रूप में इस क्षेत्र को झेलनी पडे़गी. मुख्यमंत्री की आंखे हीरे की चमक से चौंधिया गयी हैं. तभी तो माइनिंग लीज के लिए हीरा कंपनी 954 हेक्टेयर जमीन के लिए आवेदन देती है और उसे करीब 1200 हेक्टेयर जमीन देने की तैयारी पूरी कर ली गयी है. मध्यप्रदेश सरकार इस कदर मेहरबान है कि रियोटिंटो के कारनामों पर रोक लगाने वाले छतरपुर के दो कलेक्टरों के तबादले किये जा चुके हैं. अब प्रशासनिक अधिकारी न चाहते हुए भी इस बदनाम हीरा कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में काम करते दिख रहे हैं. गौरतलब है कि पहले यह कंपनी अपने कार्यों को लेकर संदिग्ध रही है. वहीं दूसरी तरफ कई लोगों की आवाजें दबा दी जा रही हैं. जो सड़कों पर उतरकर जंगलों की कटाई और दूसरे खतरों से आगाह कर रहे हैं. छतरपुर जिले के बकस्वाहा के जंगलों में ऑस्ट्रेलिया की ब्लैक लिस्टे ड कंपनी की मौजूदगी बीते कुछ सालों से विवादों को जन्मम दे रही है. वन भूमि में अवैध उत्खनन को लेकर 5 साल पहले कलेक्टर उमाकांत उमराव ने कार्रवाई करते हुए कंपनी के उत्खनन पर रोक लगा दी थी. रियोटिंटो की प्रदेश सरकार में घुसपैठ का ही नतीजा था कि कलेक्टर का तत्काल तबादला कर दिया गया. इन चर्चाओं को बल मि‍लने के कई कारण हैं. जि‍नमें से एक कलेक्टर ई रमेश कुमार के जिले का प्रभार संभालते ही रियोटिंटो को दोबारा उत्खनन की अनुमति देना भी है. दूसरा अक्टूबर 2009 को कंपनी के हीरा प्रोसेसिंग प्लांट का खुद मुख्यमंत्री ने आकर उद्घाटन कर दिया. रियोटिंटो पर प्रदेश सरकार की मेहरबानी दिखाती है कि सरकार क्षेत्र विकास की आड़ में बुंदेलखंड की धरोहर को लूटने का काम कर रही है. इस खेल में सरकार के उच्च स्तर की सहभागिता से भी इंकार नहीं किया जा सकता. वन विभाग छतरपुर से हासिल जानकारी के मुताबिक साल 2000 में हीरा खोजने के लि‍ए केंद्र सरकार ने रियोटिंटो को अनुमति दी थी. साल 2009 में इस अनुमति को फिर बढा़ दिया गया. यह वैधता साल 2011 में समाप्त हो चुकी है. रियोटिंटो ने हीरा खोजने के दौरान ही जमीन में कई फुट तक ड्रिलिंग करके जलस्तर को रसातल में पहुंचा दिया है. जिससे जंगलों का सूखना शुरू हो गया है. वहीं संरक्षित वन प्रजातियों सहित जीव-जंतु भी समाप्त होने लगे हैं. पिछली लोकसभा में खजुराहो से भाजपा के सांसद जितेंद्र सिंह बुंदेला ने इस मामले को संसद में उठाया था. लेकि‍न मामला आगे न बढ़ता देख सांसद ने पहले ही चुप्पीर साध ली. केंद्र सरकार ने इस शर्त के साथ अनुमति दी है कि आंवटित भूमि‍ के जो पेड़ काटे जायेंगे उसके बदले में राजस्व की उतनी ही भूमि पर वृक्षारोपण करना होगा. रियोटिंटो ने छतरपुर कलेक्टर और चीफ कंजरवेटर को इस शर्त को पूरा कराने के आधार पर आवेदन दिया है. जो फिलहाल जांच के लिए लंबित है. इस पूरे मामले में जिन जंगलों को काटने की अनुमति दी जा रही है. वह सघन जंगली क्षेत्र हैं. महुआ, अचरवा, शीशम, सागौन जैसे बेशकीमती वन धरोहर से यह इलाका घि‍रा हुआ है. सवाल यह उठता है कि कोई भी पेड़ लगाते ही फल देने लायक नहीं होता. रियोटिंटो के राजस्व भूमि पर वृक्षारोपण के बीस सालों बाद ही पेड़ तैयार होंगे. इस दौरान क्षेत्र के 48 गांवों के हजारों आदिवासी और अन्य जातियों के लोगों का जीवन प्रभावि‍त होगा. जि‍सकी परवाह किसी को नहीं है. एक पहलू यह भी है कि रियोटिंटो को 1200 हेक्टेबयर वन भूमि आंवटित की जा रही है. जो खनन के बाद बंजर हो जायेगी. जिससे क्षेत्रवासियों की निर्भरता ही समाप्त हो जायेगी¬. वैसे भी सरकार के प्रोजेक्ट के तहत रियोटिंटो को 2014 से अगले 30 सालों तक खनन की अनुमति प्रदान की जा रही है. कंपनी का दावा है कि वह अगले तीन सालों में क्षेत्र विकास के लि‍ए कार्य करेगी. साल 2017 से खनन शुरू कर साल 2028 तक पूरा कर लेगी. इस दौरान रियोटिंटो धरती को छलनी कर हीरे का उत्खनन करेगा. लीज समाप्ती के बाद बंजर ईलाके को त्रास भोगने के लिए छोड़ दिया जायेगा. आरोप यह भी हैं कि सर्वे के दौरान रियोटिंटो ने कई कैरट हीरे निकालकर प्रदेश सरकार को गुमराह किया है. नियमानुसार तो सर्वे के दौरान निकलने वाले हीरे की रॅायल्टी जमा होनी चाहिए थी. पर इस पूरे मामले के तार सरकार से जुडे़ लेागो से हैं. यही कारण है कि‍ प्रशासन भी खामोश बैठा है. बताया जाता है कि कलेक्टर उमाकांत उमराव की तरह ही एक और कलेक्टर राजेश बहुगुणा का तबादला भी रियोटिंटो के इशारे पर कि‍या गया था. राजेश बहुगुणा ने रियोटिंटो की फाइलों पर रोक लगा दी थी. गौरतलब है कि‍ प्रदेश सरकार का आईएएस अधिकारियों पर दबाब रहता है. इस सच को खुद भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी कहा था कि अधिकारियों पर दबाव की राजनीति रहती है. ऐसे में रियोटिंटो पर मेहरबानी के कारण बकस्वाहा इलाके को तबाह करने की दांस्ता लिखी जा रही है. जिसके दूरगामी परिणाम इलाके को भोगने होंगे. शुक्रवार में धीरज चतुर्वेदी की रपट

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