Thursday, September 3, 2015

कांग्रेस से भड़के मुलायम ने तोडा गठबंधन

कांग्रेस से भड़के मुलायम ने तोडा गठबंधन अंबरीश कुमार मुलायम सिंह ने सही समय पर राजनीति का दांव चला है .कुछ हो या न हो वे फिर राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गये .कल तक उन्हें जिस जनता परिवार ने हाशिये पर रखा था एक फैसले के बाद आज शरद यादव शाम होते होते मुलायम के घर पहुंच गये बिहार के चुनावो से पहले ही मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस के संबंध सामने आ चुके थे .लोकसभा सत्र में विपक्ष का चेहरा कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का था जबकि एक बड़े गठबंधन के बावजूद मुलायम सिंह हाशिये पर थे .अंततः मुलायम ने बीच सत्र में यह भी कह दिया कि वे संसद में गतिरोध तोड़ने के पक्ष में है और वे कांग्रेस से अलग भी जा सकते है .इस विवाद के पीछे फिलहाल अगर कांग्रेस है तो उससे पहले जनता परिवार के घटक दल भी यह स्थिति पैदा कर चुके थे . परिवार और पार्टी के शीर्ष नेताओं के विरोध के बावजूद मुलायम ने जनता परिवार को एक करने की भूमिका निभाई .वे सफल भी हुये पर जनता परिवार के कई अन्य घटक दल जनता परिवार के घटक दलों के विलय के खिलाफ थे .यही वजह है कि विलय नहीं ही हुआ और एक मोर्चा बन गया .पर इस मोर्चे में भी अध्यक्ष भले मुलायम रहे हो पर उनकी चली कभी नहीं और अति तो तब हुई जब उन्हें बिना भरोसे में लिये समाजवादी पार्टी को पांच सीट और कांग्रेस को चालीस सीट दी गई .साफ़ था बिहार से जो राजनैतिक संदेश जाता उसका सारा श्रेय लालू नीतीश के साथ सोनिया को ज्यादा जाता मुलायम को नहीं .उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल बाद विधान सभा का चुनाव है ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति में हाशिये पर जाकर वे देश के सबसे बड़े सूबे में मुकाबला नहीं कर सकते थे . आगे इसलिये आज उन्होंने यह फैसला किया .राम गोपाल यादव , शिवपाल यादव से लेकर अखिलेश यादव तक इस पक्ष में नहीं थे कि समाजवादी पार्टी का विलय इस गठबंधन में हो और जो राजनैतिक फसल उन्होंने सालों में तैयार की है उसे काटने के लिये दूसरे भी आ जाये .ऐसे माहौल में जनता परिवार के नेताओं की उपेक्षा के चलते पार्टी और परिवार दोनों का दबाव उनपर बढ़ा .यह एक आम, राय है कि यादव सिंह मामले में सीबीआई के चलते मोदी ने मुलायम पर दबाव बना रखा था .कांग्रेस से नाता तोड़ने के पीछे भी यह दबाव हो सकता है लेकिन मौजूदा राजनीति में मुलायम सिंह यादव के सामने कोई और चारा भी नहीं था .वे बिहार में हाशिये पर पहुंचा दिये गये थे और उत्तर प्रदेश में अगर अपनी स्थिति साफ़ नहीं करते तो आगे की राजनीति कठिन होती .दूसरा पहलू यह भी है कि जिस विकास के एजंडा को लेकर अखिलेश यादव आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे है उसमे केंद्र से बहुत ज्यादा टकराव कर आगे जाना मुश्किल है .यही स्थिति मोदी की भी है .वे संकट के दौर से गुजर रहे है .अर्थव्यवस्था के मोर्चे से लेकर राजनीति के मोर्चे पर भी .बिहार में प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है ऐसे में वे भी मुलायम से तार जोड़ कर कुछ फायदा लेने का प्रयास कर सकते है तो मुलायम भी बदले में विकास के एजंडा के लिये राज्य को मदद दिलाने का प्रयास करना चाहेंगे .राज्यपाल का विवाद अलग है और उससे भी मुलायम को निपटना है .यही वजह है वे बिहार में अगर जनता परिवार से नाता तोड़ रहे है तो बदले में उत्तर प्रदेश में भी कोई राजनैतिक फायदा देख रहे है .ध्यान से देखे भाजपा के नेताओं का सुर मुलायम को लेकर बदला हुआ है .और राजनीति में न तो कोई स्थाई दोस्त होता है और न दुश्मन .यह फिर साबित हो गया है .

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