ज्यादा नहीं. आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक विषय पर एक फिल्म बनाने वाले हैं. जिसके संवाद लिखने हैं इसके अलावा उन्ही की एक कामेडी फिल्म भी लिखनी है.
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क
Friday, February 22, 2013
अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना
अस्सी साल पूरे हुए -केपी सक्सेना
व्यंग्य की दुनिया में लखनऊ के पद्मश्री केपी सक्सेना एक जाना पहचाना और सम्मानित नाम हैं.साथ ही उनकी ख्याति लगान,स्वदेस,जोधा-अकबर और हलचल जैसी चर्चित फिल्मों के संवाद लेखक के रूप में भी है. शोहरत की तमाम बुलंदियों के बावजूद केपी को लखनऊ छोड़ना गवारा नहीं हुआ. शायद इसीलिए आशुतोष गोवारिकर की नई फिल्म की स्क्रिप्ट भी वे अन्य फिल्मों की तरह लखनऊ में रहकर ही लिख रहे हैं. हिमांशु बाजपेयी ने केपी से उनके व्यंग्य और फिल्मी लेखन के अनुभव के बारे में बातचीत की.
आदी सदी से ज्यादा समय हो गया आपको समसामयिक घटनाओं में व्यंग्य का पहलू खोजते हुए, क्या इस दौर में भी ये काम उतना ही सहज है जितना जवानी में हुआ करता था ?
अस्सी साल पूरे कर लिए हैं मैने उम्र के. अट्ठारह हज़ार प्रकाशित व्यंग्य हैं.इन्ही के चलते जो कुछ मिला है वो सब आप जानते ही हैं.इसलिए अब जवानी की तरह ढेर सारा लिखने का मतलब नहीं बनता.चुनिन्दा तौर पर लिखता हूं, जिस विषय पर लिखना अनिवार्य हो जाए. इसीलिए अब कम ही छपता हूं. सिर्फ हिन्दुस्तान में एक कालम जो मेरी बहन मृणाल पान्डेय के विशेष आगृह पर लिखना शुरू किया था वही नियमित लिखता हूं, लेकिन दिमाग व्यंग्य को आज भी उसी तरह सूंघता, खोजता और सोचता है भले ही मै लिखूं न. तीन घंटे पहले ही जो अखबार आया है उसमें अमर सिंह को तिहाड़ भेजे जाने की हेडलाइन है. पढ़ते ही पढ़ते मै सोच रहा था कि तिहाड़ न हुआ कोई महातीर्थ हो गया. सब इसी ओर प्रस्थान कर रहे हैं. अमां और भी तो जेले हैं मुल्क में...इस तरह दिमाग आज भी उसी तरह वयंग्य कसता है.बस अब लिखता कम हूं.
आपके जब लिखना शुरू किया होगा तब तो लखनऊ में कविता,कहानी और उपन्यास का माहौल था, फिर आपने व्यंग्य को ही क्यों चुना ?
आपकी बात सही है. व्यंग्य मैने चुना नहीं, ये मेरे गुरू अमृतलाल नागर ने मेरी पीठ पर लाद दिया, उनकी इच्छा को आजतक निभा रहा हूं. उस दौर में लखनऊ में कहानी, उपन्यास और शायरी की ही धूम थी.इन्ही विधाओं में व्यंग्य यत्र-तत्र निहित रहता था. मै भी शुरूआत में उर्दू में अफसाने लिखा करता था. नागर जी ने मुझसे कहा कि केपी क्रिकेट का खिलाड़ी भी शाट मारने से पहले फील्ड को देख लेता है और उधर ही शाट मारता है जिधर फील्डर कम हों. कहानी में फील्डर बहुत ज्यादा हैं, इसमें आगे बढ़ने में ज्यादा साधना करनी पड़ेगी.जबकि व्यंग्य की विधा में अभी भी मैदान खाली है. तुम्हारी नई शैली का लोग स्वागत करेंगे.(उस समय तक हिन्दी व्यंग्य में सिर्फ परसाई जी स्थापित थे, उनकी शैली विशुद्ध व्यंग्य की मारक शैली थी, नागर जी व्यंग्य में हास्य के पक्षधर थे.) इसी के बाद मैने व्यंग्य में कदम रखा. शरद जोशी भी लगभग उसी समय अवतरित हुए.
परसाई जी और आपके सोचने में मूल अंतर क्या है ?
परसाई जी की शैली तीखी और गहरा काटते हुए चले जाने वाले व्यंग्य की है. मै व्यंग्य में नागर जी की प्रेरणा से आया. नागर जी के व्यंग्य में हास्य घुला हुआ रहता था.वही शैली मेरी भी रही. मतलब तीखी बात हंसी की मिठास के साथ देने की.कई बार इससे चोट भले ही कम लगती हो लेकिन असर देरतक रहता है.शरद जोशी की शैली भी इसी तरह की है. मेरा मानना है कि व्यंग्य एक तरह की तीखी एंटीबायोटिक दवा है जिसे अंदर पहुंचाने के लिए उसे हास्य के स्टार्च कैप्सूल खोल में लपेटना जरूरी होता है. वरना कई बार दवा अंदर नहीं जा पाती.मै व्यंग्य में हास्य मिलाकर पेश करने का हिमायती हूं.
व्यंग्य लिखते-२ फिल्मी संवाद कैसे लिखने लगे ?
परेश रावल की वजह से. उन्होने ही आमिर खान को लगान के लेखन के लिए मेरा नाम सुझाया था. परेश मेरे बहुत पुराने दोस्त हैं.असल में आमिर को फिल्म में अवधी जुबान, अंग्रेजी मिली हिन्दी और बादशाही जुबान तीनों में संवाद चाहिए थे. परेश रावल ने आमिर खान को कहा कि इसके लिए एकदम फिट आदमी को जानता हूं लेकिन वो फिल्म का आदमी नहीं हैं. पहली बार लिखेगा. आमिर ने कहा कि मेरा भी पहला प्रोडक्शन है. फिर आमिर खान ने मुझे फोन किया. पहले तो मुझे लगा कि कोई मुझसे मजाक कर रहा है. मैने उनसे पूछा भी कि स्थापित फिल्मी लेखकों के होते हुए भी मेरे जैसे अखबारों, मैगजीनों में लिखने वाले को क्यो याद किया. आमिर ने कहा क्योंकि इस फिल्म को आपकी जरूरत है.
आपने चार फिल्मों के संवाद लिखे, सबसे ज्यादा संतुष्टि किस फिल्म से मिली ?
जोधा-अकबर से. क्योंकि एक तो इसमें मुझे दौरे-मुगलिया के असली ऐतिहासिक पात्रों के संवाद लिखने थे,जिनमें अकबर,जोधाबाई,मान सिंह,टोडरमल जैसी बड़ी ऐतिहासिक शख्सियतें थी.दूसरी और ज्यादा अहम बात ये है कि इसमें मुझे मेरी उर्दू को बाहर लाने का मौका मिला था.मुझे ज्यादा खुशी इसी बात की थी.क्योंकि मूलत: मै उर्दू का ही आदमी हूं. मैने लेखन की शुरूआत इसी से की थी. इस फिल्म में मुझे मेरे हिन्दी उर्दू के भाषाई हुनर को पूरी तरह दिखाने का मौका मिला.
आगे कौन सी फिल्मों के लिए लिख रहे हैं ?
ज्यादा नहीं. आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक विषय पर एक फिल्म बनाने वाले हैं. जिसके संवाद लिखने हैं इसके अलावा उन्ही की एक कामेडी फिल्म भी लिखनी है.
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क
ज्यादा नहीं. आशुतोष गोवारिकर प्रागैतिहासिक विषय पर एक फिल्म बनाने वाले हैं. जिसके संवाद लिखने हैं इसके अलावा उन्ही की एक कामेडी फिल्म भी लिखनी है.
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