Thursday, August 2, 2012
राजनैतिक दखल की तैयारी तो पहले से ही थी टीम अन्ना की
अंबरीश कुमार
लखनऊ ,२ अगस्त । आज जनता की राय लेकर राजनैतिक दखल की बात करने वाली टीम अन्ना की राजनैतिक महत्वकांक्षा पुरानी है और हिमाचल चुनाव को लेकर यह टीम दो हिस्सों में पहले ही बंट चुकी थी । इसी साल अप्रैल में टीम अन्ना में हिमाचल चुनाव को लेकर बहस तेज हुई और एक धड़े ने जन संगठनों से आए सदस्यों की राय किनारे करते हुए चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया था । जिन लोगों ने चुनाव में हिस्सा लेने का विरोध किया था उनमे किसान संघर्ष समिति और संघर्ष वाहिनी मंच के नेता शामिल थे । जबकि टीम अन्ना के एक धड़े ने हिमाचल में चुनावी संभावनाओं का जायजा भी लिया था । इस मुद्दे को लेकर टीम में काफी मतभेद उभरे और एक बार फिर यह विवाद गहरा सकता है ।
चुनाव लड़ने के पक्ष वालों का मानना था कि बिना राजनैतिक ताकत के जन लोकपाल या दूसरे महत्वपूर्ण कदम उठाना संभव नही है । इसलिए हिमाचल से इस प्रयोग की शुरुआत हो सकती है । इस सिलसिले में वह जमीनी काम शुरू किया गया । पर चुनावी राजनीति से आंदोलन की धार कमजोर पड़ सकती है । जिन लोगों ने चुनाव में जाने का सीधा विरोध किया था उनमे डा सुनीलम भी शामिल थे । दरअसल चुनावी राजनीति का समीकरण अलग ढंग का होता है जिसम्मे जिसमे बिना मजबूत संगठन के पहले ही दौर में पार्टी किनारे लग जाएगी वह चाहे कितनी भी ईमानदार क्यों न हो । लोक राजनीति मंच जैसे उदाहरण है । जब भी आंदोलन से जुडी ताकते चुनाव में उतरी वे बुरी तरह नाकाम रही । चाहे उत्तर में टिकैत हो या दक्षिण में नंजदुंग स्वामी ,चुनाव राजनीति में कामयाब नहीं हुए । शरद जोशी का भी उदाहरण है । किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने कहा -पहले तो कोई संगठन बनाना होगा तब राजनैतिक दल बनेगा । उत्तर प्रदेश में तो कोई संगठन नजर नहीं आता फिर इनके साथ जुड़ने वाले ज्यादातर लोग अराजनैतिक है ऐसे में रास्ता बहुत आसान नहीं है । आंदोलन का समर्थन तो बारह साल के बच्चो से लेकर गांधीवादी संस्थाओं ने किया था पर चुनाव की राजनीति में इनकी भूमिका ज्यादा कुछ नही बनेगी । दूसरे आज की राजनीति जातीय धुर्वीकरण पर चलती है ,यह सब बड़ी चुनौतिया है । पिछली बार जब इस मुद्दे को लेकर विवाद हुआ तो अन्ना हजारे भी विधान सभा चुनाव में सीधे दखल के पक्ष में नही थे । अन्ना का मानना था कि बिना संगठन के यह आत्मघाती कदम होगा और जबतक इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नही बन जाती वे इस पहल में शामिल नही होंगे ।
अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़े जन संगठनों के लोग इस पक्ष में रहे है कि पहले राजनैतिक प्रशिक्षण किया जाना चाहिए कार्यकर्ताओं का । उसके बाद संगठन का ढांचा तैयार हो तब कोई ठोस पहल हो सकती है वर्ना इस तरह सीधे चुनाव में उतरने का कोई असर नहीं पड़ेगा । दूसरी तरफ जयप्रकाश आंदोलन के प्रमुख नेता महात्मा भाई ने कहा -जेपी आंदोलन का जिक्र आते ही लोग लालू नितीश का उदाहरण देने लगते है यह ठीक नहीं । उस आंदोलन की एक धारा चुनावी राजनीति से बाहर रही और बोधगया से लेकर गंगा मुक्ति आंदोलन किए और आज भी वे ताकते समाज में बदलाव की राजनीति से जुडी है । चुनाव जिसे लड़ना है वे लड़े पर इतिहास को ठीक से देखे ।
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