Monday, August 13, 2012
अस्सी पार का अकेलापन
अंबरीश कुमार
पापा जिस दिन वाशिंगटन पहुंचे उसी दिन गोरखपुर में उनकी बहन यानी अपनी बुआ जी गुजर गई .उन्हें नहीं बताया यह जानकर कि सदमा न पहुंचे .आज अपूर्व ने कुछ फोटो भेजी जिससे पता चला कि वे घूमफिर भी रहे है .पिछले तीन महीने में वे करीब एक महीना गोरखपुर रहे जबरदस्त गर्मी में .फिर तबियत ख़राब हो गई क्योकि अकेले रहने कि वजह से खाना ढंग से नहीं हो पता .यह जून की बात है .अचानक बनारस से अन्नू का फोन आया कि पापा बहुत कमजोर हो गए है बोल भी नहीं पा रहे है .वह परेशान थी और उन्हें गोरखपुर से बनारस लानाचाहती थी प़र पति को फुर्सत नहीं क्योकि बनारस के जल संस्थान की जिम्मेदारी के चलते लगातार बैठक और व्यवस्था का जिम्मा और आजम खान जैसे मंत्री के आने के बाद काफी सख्ती थी .खैर गोरखपुर के बाल रोग विशेषज्ञ डा आरएन सिंह जिनसे अपना घनिष्ठ संबंध है उन्हें फोन किया ताकि वे फ़ौरन देख ले .मै रामगढ में था और वहा से वाघ एक्सप्रेस से पहुँचने में भी अठारह घंटे लगते दूसरे ठंड औए नाराजगी की की वजह से
साथ आते यह भी संभव नहीं था .डा साहब ने बताया कि थ्रोट इन्फेक्शन की वजह से छाले पड़ गए है इसलिए बोलने में दिक्कत है और कमजोरी है उन्हें गोरखपुर अकेले नहीं छोड़ा जा सकता .प़र पापा अन्नू को छोड़ किसी की सुनाने को तैयार भी नहीं होते .अन्नू भी गोरखपुर पहुँच गई और कहा यहाँ बिजली कटौती के चलते इस गर्मी में रहना बहुत मुश्किल है और पापा को अकेले लेकर जाना भी .तब एसके सिंह से एक टैक्सी करने को कहा और अपने गोरखपुर के संवाददाता विनय कान्त से मदद ली जो साथ पापा को बनारस तक छोड़ कर आए.उसके बाद वे जुलाई के पहले हफ्ते तक वहा रहे और स्वस्थ भी हो गए .उसके करीब महीना भर दिल्ली .अब महीना भए से ज्यादा अमेरिका में रहेंगे .सितम्बर में फिर गोरखपुर .सोलह को गोरखपुर जा रहा हूँ बुआ जी की तेरहवी है और घर भी देख लूँगा .नीचे का पोर्शन ठीक कराना है .पापा रहेंगे वही और मुझे गोरखपुर जाना रास नहीं आता वजह यह भी कि कभी रहा नहीं और कोई सामाजिक दायरा भी नहीं है ,सिर्फ रिश्तेदार है जिनके यहाँ जाने प़र नाली ,दीवार ,बाग बगीचा और खेत सम्बन्धी विवाद के मामले ही चर्चा में रहते है .पापा का गाँव का मोह भी आजतक नहीं छुट पाया है .पूरी फ़ाइल दे चुके है बरहज बाजार से पहले अपने गाँव और घाघरा पार देवार के अपने खेतों की जिसमे मै कभी दिलचस्पी नहीं दिखा पाया .उनकी नाराजगी की एक वजह यह भी रही .मम्मी जबतक थी तो कोई समस्या नहीं थी वे ही पुल थी पिता और पुत्र के बीच .प़र अब एक दूसरे को समझा पाना बहुत मुश्किल होता है .मेरा संवाद बहुत कम हो पाता है या सीधे कहूँ तो बचना चाहता हूँ .उनकी खीज को भी समझ सकता हूँ जिसे वे घर मानते है वहा अब मम्मी के जाने बाद घर जैसा कुछ नहीं है .और जो घर पुत्रों के है उसे वे शायद वह अपना घर नहीं मानते .
अमेरिका में वाशिंगटन के पास अपूर्व ने बड़ा घर बनवाया है .पापा ने सविता से कहा यह घर काफी बड़ा और भव्य है ,प़र वहां से भी वे एक महीने बाद यानी सितम्बर में लौट रहे है .
फोटो -अमेरिका में अपूर्व के घर के बाहर पापा ,अंजुला और अपूर्व
२-व्हाइट हाउस के बाहर घूमते हुए .
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